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________________ १३६ जीवन की पोथी यह है बड़े की समझदारी या सरलता । बड़ा आदमी बात छुपाता है। उसे सचाई तक जाने का अवसर ही नहीं मिलता। आदमी अधिक समझदार है इसीलिए ये कानून की पेचीदगियां और व्यवस्था की जटिलताएं हैं। आदमी ज्यों-ज्यों समझदार होता जा रहा है, जटिलताएं बढ़ती जा रही हैं। समझदारी के साथ जटिलता का गहरा गठबन्धन है । आदमी समझदारी से जटिलता का तानाबाना बुनता है, जाल बुनता है और स्वयं उसमें ऐसा फंसता है कि उससे मुक्त होना कठिन हो जाता है। पहली अवस्था-बचपन की अनुभूति, अव्यक्त अवस्था की अनुभूति है । इस अवस्था में पहुंचना बहुत आवश्यक है। जब तक सारा व्यक्त ही रहेगा, तब तक ध्यान संभव नहीं है । ध्यान करने वाला भी साधक है, सिद्ध नहीं है । उसमें अहंकार, लोभ, कपट, घृणा, ईर्ष्या, कामवासना है। इनका एक साथ उन्मूलन नहीं हो सकता। ध्यान का प्रयोजन है इनको अव्यक्त अवस्था में ले जाना । जो व्यक्त हैं उन्हें अव्यक्त अवस्था में पहुंचाना । जब ये दोष अव्यक्त अवस्था में जाएंगे तब धीरे-धीरे इनका उपशमन होता जाएगा। ये सारे दोष निर्वीर्य और निष्क्रिय होते जाएंगे। जब इन दोषों को व्यक्त होने का मौका मिलेगा तब ये बार-बार प्रगट होते जाएगे। इसलिए आवश्यक है कि इन दोषों को व्यक्त होने का अवसर न दिया जाए, उन्हें अव्यक्त बनाए रखें। इन आवेगों का विफलीकरण करना आवश्यक है। जब हम जीभ को उलट कर तालु की ओर ले जाते हैं तो फिर बोला नहीं जाता। यह क्रोध या कलह के विफलीकरण का एक उपाय है। यह वैसी ही प्रक्रिया है कि अग्नि वहां फेंकी जहां कोई घास-फूस नहीं है। वह अग्नि जलेगी नहीं, शीघ्र ही बूझ जाएगी । अग्नि का सफलीकरण नहीं होगा। प्रत्येक व्यक्ति में तरगें उठती हैं। मन की चंचलता के कारण व्यक्ति में कभी क्रोध की, कभी वासना की, कभी भय की और कभी माया की तरंग उठती है । आदमी इनसे प्रभावित होता है । जो ध्यान करना जानता है वह इन तरंगों को शांत कर देता है। ध्यान इन तरंगों के उपशमन की प्रक्रिया है, विफलीकरण की प्रक्रिया है। शत्रु को सफल न होने देना-यह रणनीति है । जिसकी रणनीति में शत्रु सफल होता जाता है, उसकी रणनीति विफल मानी जाएगी। इसी प्रकार भीतर में जो दोष हैं, उनके प्रति रणनीति यह है कि जितना उनको व्यक्त होने का अवसर मिलेगा, उतने ही वे सफल होंगे और जितना उन्हें अव्यक्त रखा जाएगा, वे दोष निष्फल होते चले जाएंगे। भय एक आवेश है । भय तब सफल होता है जब व्यक्ति डर कर भाग जाता है । जब आदमी डर कर भागता है तो भय उसका पीछा करता है । यदि उसका सामना किया जाए तो वह विफल हो जाएगा। किंतु आदमी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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