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बचपन
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अपने मन की बात नहीं खोल देता, तब तक उस बीमारी से छुटकारा पाना मुश्किल है। -
जैन आचार्यों ने विशुद्धि का एक सूत्र दिया--'अईयं पडिक्कमामि'मैं अतीत का प्रतिक्रमण करता हूं। अतीत में जो त्रुटि हुई, उसकी आलोचना करता हूं, उससे मुक्त होना चाहता हूं। यह अध्यात्म' का सूत्र है, साथ ही साथ चिकित्सा का भी सूत्र है। एक मनोवैज्ञानिक भी पद्धति का सहारा लेकर ग्रंथि-मोक्ष करता है और मूल तक पहुंचता है।
ईसा ने कहा, जो भोले बालक की तरह होगा, उसके लिए स्वर्ग का द्वार खुल जाएगा। स्वर्ग के राज्य में सरल व्यक्ति ही प्रवेश पा सकता है, कपटी कभी प्रवेश नहीं पा सकता।
एक विचित्र बात है, बालक को कपटी और मायावी नहीं माना जाता । दस वर्ष की अवस्था को पार करने के बाद चाहे कोई कपट करे या न करे, माया करे या न करे, वह अवस्था कपटी और मायामुक्त मानी जाएगी। बड़ा आदमी कपट नहीं भी करता, फिर भी उसे कपटी मान लिया जाता है और बच्चा यदि कपट कर भी लेता है तो उसे कपटी नहीं माना जाता । बचपन की अवस्था को सर्वथा माया-मुक्त और कपट-मुक्त माना गया है । यह वह अवस्था है जिसमें सुख-दुःख की अनुभूति कम होती है, तीव्रता कम होती है, स्मृतियां कम होती हैं। बच्चा न अपमान को याद रखता है, और न प्रशंसा को याद रखता है । एक क्षण में वह अपने साथी से लड़ पड़ेगा और दूसरे क्षण में उस साथी के साथ खाने बैठ जाएगा । यह है उसकी सरलता या अग्रन्थि का वर्ताव।
बड़ा आदमी बात छुपाता है और समझदार भी कहलाता है। बच्चा छुपाना नहीं जानता और नादान भी कहलाता है। उस समझदारी से यह नादानी अच्छी है । इसी से ग्रंथिमोक्ष होता है, अतीत में यात्रा होती है।
कमरे में दादा-पोता बैठे थे। फोन की घंटी बजी । बच्चे ने रिसीवर उठाया। बच्चे ने दादा से कहा-'अमुक व्यक्ति आपसे बात करना चाहता है।' दादा बोला-कह दो दादा बाजार गए हैं। बच्चे ने तत्काल कहा'हलो ! दादाजी कह रहे हैं कि कह दो, दादा बाजार गए हैं।' यह है बच्चे की सरलता!
कवि सम्मेलन का आयोजन । एक कवि कविता-पाठ करने लगा। परिषद् से चप्पल और पत्थर आने लगे। उस कवि का मुंह लहूलुहान हो गया । वह मुंह पर रूमाल लपेटे घर गया। पत्नी बोली-मुंह पर रूमाल क्यों ? अरे ! लहू भी आ रहा है ! क्या हुआ? वह बोला-कोई खास बात नहीं है । आगे के दो दांत हिल रहे थे। उन्हें उखड़वाना था। आज ऐसा संयोग मिला कि वे स्वयं उखड़ गए, इसलिए मुंह से रक्त आ रहा है।
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