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बचपन
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इस अन्तराल में क्या-क्या किया था, उसका चिंतन करें। कितने अच्छे विचार आए, कितने बुरे विचार आए, एक-एक घटना, स्थिति और संदर्भ को देखते चले जाएं; चलते चलें। यदि आज आपकी आयु चालिस वर्ष की है तो एकएक वर्ष की स्मृति करते-करते वहां तक पहुंच जाएं जहां तक स्मृतियां ले जाती हैं । आगे चलें और बचपन की अवस्था तक पहुंच जाएं। वहां देखें, आपने कौन से संस्कार लिए थे? क्या-क्या पाया था ? वहां एक ऐसा अध्याय खुलेगा, जिसको आपने आज तक नहीं पढ़ा था । उसके आलोक में आप अपने आपको समझ सकेंगे । आप जान सकेंगे कि वर्तमान में जो आदतें हैं उनका मूल क्या है ? कहां है ? आपमें अच्छी आदतें भी हैं और बुरी आदतें भी हैं। उन सबकी बुआई इसी अवस्था में हुई है, यह आप जान लेंगे। वहां प्रत्येक आदत का मूल स्रोत खोजा जा सकेगा। यह आदत क्यों बनी? कब बनी ? किन परिस्थितियों में बनी ? यह पता लग जाएगा। मूल संस्कारों का पता भी लगाया जा सकता है कि आठ वर्ष की अवस्था में किस कम का विपाक प्रगट हुआ था और उससे मेरा कौन-सा स्वभाव बना था ?
अपने व्यक्तित्व का विश्लेषण करना, यह बहुत बड़ा काम है। जो अपने मूल तक पहुंच जाता है, उसके सामने गांठ को खोलने का सूत्र प्रस्तुत हो जाता है । जब तक यह सूत्र हस्तगत नहीं हो जाता, तब तक आदमी नहीं जान पाता कि अमुक बुराई की बुआई कब-कैसे हुई थी? वहां पहुंचे बिना इस पौधे को उखाड़ा नहीं जा सकता।
एक भिखारी था । भीख मांगते-मांगते उसकी आदत इतनी मजबूत हो गई कि उसे छोड़ पाना संभव नहीं था। उसने लाटरी में रुपये लगाए। मंदिर में जाकर प्रार्थना करने लगा-'भगवन् ! इस बार मेरी लाटरी उठे
और मुझे लाख रुपये मिल जाएं।' पास में एक दूसरा व्यक्ति खड़ा था। उसने पूछा, तुम तो भिखारी हो। क्या करोगे लाख रुपये से ? वह बोला "एक कार खरीदूंगा । आज तक पैदल घूमकर भीख मांगता था। कार आ जाने पर कार में बैठकर भीख मांगने निकलूंगा।'
भीख मांगने की आदत बहुत गहरी थी। कार आ जाने पर भी उससे छुटकारा पाना उसके लिए कठिन था।
संस्कार छूटते हैं प्रतिक्रमण करने से । प्रतिक्रमण करते-करते बचपन में पहुंचना पड़ेगा, तब संस्कार से छुटकारा संभव हो सकेगा। जब प्राणी गर्भ में आता है, तब बहुत कुछ लेकर आता है । वहां तक पहुंचने का प्रयत्न होना चाहिए । पर वहां रुकना नहीं है । यदि सामर्थ्य और बढ़ जाए तो और आगे बढ़ना है, पूर्वजन्म का ज्ञान करना है, जाति-स्मृति को प्राप्त करना है।
यह है प्रतिक्रमण की प्रक्रिया, अतीत में लौटने की प्रक्रिया । अतीत में चलते चलो, अतीत को देखते जाओ। कब क्या घटित हआ था ? किस
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