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________________ प्रश्न है अखंड व्यक्तित्व का आज की चर्चा एक कहानी से शुरू कर रहा हूं। भोज हो रहा था और सेठ बहुत मुक्तभाव से व्यवस्था कर रहा था। भोज सम्पन्न होने आया। परम्परा है अन्त में पापड़ परोसने की। पापड़ खाने की चीज तो नहीं है पर इसके बिना भोजन अधूरा माना जाता है। सेठ ने सोचा-पापड़ मैं स्वयं परोसू, सबसे मिल भी लूं और भोजन की प्रशंसा जान लूं । सेठ चला। पापड़ परोसता जा रहा था । एक आदमी जो साधारण था, उसका नम्बर आया और योग कोई ऐसा मिला कि पापड़ परोसा और वह कोई खंडित पापड़ था, टूटा हुआ था। उसने देखा और देखते ही उसके मन में रोष का ज्वार आ गया। उसने सोचा, सेठ कितना नालायक है, जो बड़े-बड़े आदमी हैं उन सबको तो पूरा पापड़ परोस रहा है और मुझे टूटा हुआ खंडित पापड़ परोस रहा है। वह सहन नहीं कर सका। उसके सन में क्रोध की ज्वालाएं भभक उठीं। सोचा कि बदला लूंगा। वह बहुत खिन्न हो गया। कुछ दिनों के अन्तराल से साधारण व्यक्ति ने एक भोज का आयोजन किया । बड़ा भोज, बड़े-बड़े लोगों को बुलावा । वह सेठ भी आया। बढ़िया खाना परोसा गया । सबने जी भर खाया । अब पापड़ परोसने का समय आया । वह छाबड़ी लेकर चला। सबको पूरा पापड़ परोसा और उस सेठ का नम्बर आया तो उसे आधा पापड़ परोसा । कोई बात नहीं थी। सेठ ने ध्यान ही नहीं दिया था। आधा आया तो आधा आया। जब उसने देखा कि सेठ ने ध्यान ही नहीं दिया है तब उसका मजा किरकिरा हो गया; प्रतिशोध का आनन्द नहीं आया। वह रुककर सेठ से बोला--'सेठजी ! याद है वह दिन जब आपने मुझे खंडित पापड़ परोसा था ।' सेठ बोला, मुझे तो याद ही नहीं था। वह बोला---'ओह ! मैंने तो इतना कर्ज लेकर भोज दिया, प्रतिशोध लिया और आपको याद ही नहीं रहा। सेठ ने कहा, 'मूर्ख क्यों तो कर्जदार बना, मुझे पहले ही पूछ लेता।' तो समस्या है खंडित पापड़ की और खंडित व्यक्तित्व की ___ व्यक्तित्व भी जब खंडित होता है तब किनारे टूट जाते हैं। पापड़ खंडित होता है तो एक बड़ी समस्या है। व्यक्ति प्रतिक्रिया पैदा करता है और फिर दूसरे को भोज का आयोजन करना पड़ता है। ये सारी प्रतिक्रियाएं जो चलती हैं वे खंडित व्यक्तित्व की चलती हैं। प्रतिक्रिया कि उसने ऐसा किया तो मुझे भी ऐसा करना है। ये सारे खंडित व्यक्तित्व के परिणाम हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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