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________________ योग । ८६ वायु प्राण अपान समान उदान व्यान तत्त्व केन्द्र स्थान हृदय गुदा नाभि कण्ठ नसों के समीप नाम वेग १. पृथ्वी अल्पतर २. जल अल्प ३. तेजस् तीव्र ४. वायु तीव्रतर ५. आकाश तीव्रतम लम्बाई १. पृथ्वी : मूलतः प्राण तत्त्व एक ही है । अणुओं के न्यूनाधिक वेग या कम्पन के अनुसार उसके पांच विभाग होते हैं । उनके नाम, वेग, रंग, आकार आदि इस प्रकार हैं : ५. आकाश : अस्पष्ट कार्य श्वासोच्छ्वास, फेफड़ों को साफ़ करना । मल-मूत्र विसर्जन । रंग Jain Education International भुक्त आहार को पाचन - योग्य करना । मस्तिष्क में रस पहुंचाना । रुधिराभिसरण व संधियों को गति देना । आकार पीला चतुष्कोण सफ़ेद या बैंगनी अर्धचन्द्राकार लाल नीला या आसमानी अनेक बिंदु गोल बेस्वाद ( या आकारशून्य ) गति नाक से बाहर १२ अंगुल नासिका के समीप नासिका के नीचे १६ अंगुल तक स्पर्श । २. जल : नाक से बाहर १६ अंगुल नासिका के नीचे भाग में – १२ अंगुल तक स्पर्श । ३. तेजस् : नाक से बाहर ४ अंगुल नासिका के ऊपरी भाग मेंअंगुल तक स्पर्श । ४. वायु : नाक से बाहर ८ अंगुल नासिका के दाएं-बाएं - ४ अंगुल तक स्पर्श । त्रिकोण गोल काला या नीलाभ रस- स्वाद मधुर चरपरा तीखा खट्टा For Private & Personal Use Only ८ दोनों स्वरों के अन्दर बहकर गतिशून्य हो जाता है । www.jainelibrary.org
SR No.003076
Book TitleTat Do Pravah Ek
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1967
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size5 MB
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