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________________ अणु अस्त्र और मानवीय दृष्टिकोण । ८३ निमंत्रण भी उसे नहीं देना चाहिए । वे थोड़े से व्यक्ति, जिनके हाथ में सत्ता है, इस प्रश्न पर मानवीय दृष्टि से नहीं सोच रहे हैं । वे सोच रहे हैं, राष्ट्रीय दृष्टि से । पर राष्ट्र रहेगा कैसे जब मनुष्य ही नहीं होगा ? अणु अस्त्रों से मृतप्राय मनुष्यजति क्या राष्ट्र को समुन्नत रख सकेगी ? अणु अस्त्रों से अभिशप्त अन्धी, बहरी भावी पीढ़ी से क्या राष्ट्र समुन्नत होंगे ? सारी स्थिति बहुत स्पष्ट है, निर्विवाद है, उसे जानते हुए भी जो अनजान बन रहे हैं, उन्हें कैसे जगाया जाए ? आज इस दिशा में तीव्र प्रयत्न की आवश्यकता है । शान्ति प्रतिष्ठान ने अभी-अभी एक अणु अस्त्र-विरोधी सम्मेलन बुलाया था । वह भी शायद शीघ्रता में हुआ होगा । इसीलिए वहाँ शान्ति के लिए अनवरत प्रयत्न करने वाले अनेक संस्थाओं के प्रतिनिधि नहीं थे । अध्यात्मवादी या शान्ति की दिशा में प्रयत्न करने वाले शायद मिलना नहीं जानते । वे किसी - किसी बहाने पृथक् होकर चलते हैं । हिंसा में अपूर्व मेल होता है । उसकी शक्ति तत्काल एकत्रित हो जाती है । हमें अहिंसा की शक्ति को संचित करना है । निःशस्त्रीकरण की दिशा में कोई राष्ट्र पहल करने को तैयार नहीं है । पूर्ण निःशस्त्रीकरण सर्वथा वांछनीय होते हुए भी, सम्भव है तंत्र के लिए व्यावहारिक न हो किन्तु अणु अस्त्र जैसे मानव जाति के प्रलयकारी अस्त्रों के निर्माण तथा संग्रह का उत्सर्ग करना अनिवार्य है । इस दिशा में जो पहल करेगा, वह मानवता का सबसे बड़ा पुजारी होगा । युद्ध की कल्पना करना बहुत धृष्टता की बात है । किन्तु युद्धकाल में भी युद्धस्थली से अतिरिक्त क्षेत्र को प्रभावित करने वाले अस्त्रों के निर्माण और प्रयोग पर एक अन्तर्राष्ट्रीय नियंत्रण हो और यदि वह मानवता की अखण्डता के आधार पर हो तो वह विकास का एक बहुत बड़ा चरण होगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003076
Book TitleTat Do Pravah Ek
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1967
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size5 MB
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