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________________ ७६ । तट दो : प्रवाह एक ३. परमाणुवाद के अनुसार एक आकाश-प्रदेश में एक परमाणु समा सकता है, वहां अनन्त परमाणुओं का स्कन्ध भी समा सकता है। रसायनशास्त्र के अनुसार एक तोले बुभुक्षित पारद में सौ तोला स्वर्ण समा सकता है। अवकाशवाद की इस रहस्यपूर्ण पद्धति पर एडिंगटन ने इन शब्दों में प्रकाश डाला था—'मनुष्य-शरीर के सारे खोखले स्थानों को निकाल दिया जाए और शेष प्रोटोनों और इलेक्ट्रोनों को एक जगह इकट्ठा कर लिया जाए तो छः फुट और ढाई मन का मनुष्य एक छोटे-से बिन्दु का रूप ले लेगाइतना छोटा बिन्दु कि आप उसे अणुवीक्षण यंत्र से ही देख सकेंगे। विश्व के सभी प्रकार के प्राणियों को इस प्रकार बिन्दुओं में बदल दिया जाए तो वे सब-के-सब हमारे पानी पीने के गिलास में समा सकेंगे । एक हाथी पूर्व की ओर मुंह करके खड़ा है और एक हाथी का बच्चा पश्चिम की ओर मुंह करके हाथी की सूंड और दूसरे पैर के बीच में खड़ा है । इस हाथी और उसके बच्चे के शरीर के परमाणुओं को मींजकर एक-दूसरे में मिला दें तो केवल इतना द्रव्य रहेगा जो एक सूई के छेद से निकाला जा सके। सभी पदार्थों के अवयवों का यही हाल है । यदि समूचे संसार के पदार्थों को मींजकर हम इन अणु-परमाणुओं को एक-दूसरे में मिला दें तो हमें एक छोटी नारंगी के बराबर की चीज़ मिलेगी। ४. कुछ लोगों ने कहा—भिक्षु जी व्याख्यान देते हैं तब रात एक प्रहर से बहुत अधिक चली जाती है। आचार्य भिक्षु ने कहा—सुख की रात छोटी होती है, दुःख की रात बहुत बड़ी लगती है। महाकवि कालिदास ने 'अणो रणीयान् महतो महीयान्,' इस समस्यापूर्ति में यही कहा था “मैं परम पवित्र यज्ञोपवीत को हाथ में ले, सौगन्ध खाकर कहता हूं कि प्रिया के योग में दिन अणु से भी अणु लगता है और उसके वियोग में महान् से भी महान् ।” __महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने भी अपनी पत्नी को सापेक्षवाद इसी उदाहरण द्वारा समझाया था। उन्होंने कहा- "प्रिया के पास बैठे व्यक्ति को एक घंटा दो मिनट के बराबर लगता है और भट्ठी के पास बैठे व्यक्ति को दो मिनट घंटा के बराबर लगते हैं।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003076
Book TitleTat Do Pravah Ek
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1967
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size5 MB
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