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जीवन का तर्कातीत अस्तित्व । ४६ प्रस्तुत किया कि सर्वज्ञ नहीं है, यह तुम्हारा तर्क वास्तविक सत्य नहीं है। जो व्यक्ति सर्व-देश और सर्व-काल की सर्व-घटनाओं को जानता है, वही कह सकता है कि सर्वज्ञ नहीं है। तुम नहीं जानते, इसलिए तुम कैसे कहते हो कि कोई सर्वज्ञ नहीं है।
___ असर्वज्ञवादी का प्रतितर्क होता है तो तुम किस आधार पर कहते हो कि सर्वज्ञ है ? क्या तुम्हें अतीन्द्रिय ज्ञान है, जिससे सर्व-देश और सर्व-काल की सर्व-घटनाओं को जानकर तुम कह सको कि सर्वज्ञ है।
सर्वज्ञवादी का उत्तर इस भाषा में होता है कि वास्तविक सत्य, प्रत्यक्ष ज्ञान या अतीन्द्रिय ज्ञान से देखकर मैं भी नहीं कह रहा हूं कि सर्वज्ञ है और तुम भी नहीं कह रहे हो कि सर्वज्ञ नहीं है। संस्कार की दृष्टि से या युक्ति से मैं कहता हूं सर्वज्ञ है और तुम कहते हो सर्वज्ञ नहीं है। ___इन दोनों के तर्क और प्रतितर्क को पढ़कर संस्कार उद्बुद्ध हो सकते. हैं किन्तु यह आत्मानुभूति नहीं हो सकती कि सर्वज्ञ है या नहीं है । वह तो अपनी साधना से ही हो सकती है। उसका अपना स्व वहीं है।
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