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________________ २८ । तट दो : प्रवाह एक : सत्य सह-अस्तित्व की सिद्धान्त-शृंखला इस प्रकार होगीशान्ति का आधार : व्यवस्था व्यवस्था का आधार : सह-अस्तित्व सह-अस्तित्व का आधार : समन्वय समन्वय का आधार सत्य का आधार अभय अभय का आधार : अहिंसा अहिंसा का आधार : अपरिग्रह अपरिग्रह का आधार : संयम जनता जो कुछ कर सकती है, वह यही कि विश्वभर के शान्तिवादी संगठनों का एकीकरण हो। वे एक भावना से विश्व-मानस को इन सिद्धान्तों से प्रभावित करें : १. निरपेक्ष या आग्रहपूर्ण नीति का परित्याग। २. सापेक्ष या तटस्थ नीति का स्वीकरण । ३. स्थिति का स्थायित्व की दृष्टि से मूल्यांकन । ४: स्थिति का परिवर्तन की दृष्टि से मूल्यांकन । ५. अनाक्रमण और उसका समर्थन । ६. आत्म-विश्वास और पारस्परिक सौहार्द्र का विकास । ७. मानवीय एकता की तीव्र अनुभूति । यह विश्व अखण्डता से किसी भी रूप में नहीं जुड़ा हुआ खण्ड और खण्ड से विहीन अखण्ड नहीं है। यह विश्व यदि अखण्ड ही होता, तो व्यवहार नहीं होता, उपयोगिता नहीं होती, प्रयोजन नहीं होता। अगर विश्व खण्डात्मक ही होता तो ऐक्य नहीं होता। अस्तित्व की दृष्टि से यह विश्व अखण्ड भी है, प्रयोजन की दृष्टि से यह विश्व खण्ड भी है। __ आज मनुष्य-जाति के सामने अस्तित्व का प्रश्न प्रबल है। उसे यह विश्व-राज्य या सह-अस्तित्व-इनमें से किसी एक सिद्धान्त के सहारे ही समाहित कर सकती है। यथार्थवादी और धार्मिक धारणा से सह-अस्तित्व का विकल्प अधिक संभव है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003076
Book TitleTat Do Pravah Ek
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1967
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size5 MB
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