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समाज-व्यवस्था में दर्शन । १५
समाजवादी प्रणाली में भी सत्ता कुछेक व्यक्तियों में केन्द्रित ह गई है। जनता अपने को असहाय -सी अनुभव करती है । अपना व्रत लेकर चलने वाले कभी अत्राण नहीं होते ।
शस्त्र शब्द में त्राण शक्ति की कल्पना है पर वह वास्तविक नहीं । भीषण आयुध रखने वाले भी संत्रस्त हैं ।
दशार्णभद्र अपना ठाट-बाट लेकर भगवान महावीर के दर्शन के लिए चला । इन्द्र ने सेना की रचना की । राजा पराजित हो गया, त्राण अत्राण की अनुभूति करने लगा क्योंकि वह पर की सीमा में चला गया था । अंत में वह भगवान की शरण में आया और विजयी बन गया । अब इन्द्र पैरों में आ लुटा ।
जो पर-शासन में पराजित हो गया, वह स्व- शासन में आ विजयी बन गया। समाज में रहने वाले स्व की सीमा में चले । इस स्व-शासन का विकास होने पर समाज में व्यवस्था नहीं होगी किन्तु एक विशेष अवस्था होगी । नियम कृत्रिम नहीं होगा, किन्तु सहज होगा । प्रेरणा का मूल भय नहीं होगा किन्तु कर्तव्यनिष्ठा होगी ।
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