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________________ ६२ । तट दो : प्रवाह एक जप रंग ऊं—ओंकार का जप मंत्रों में सर्वोपरि स्थान है । इसके उच्चारण का शरीर और मन पर अद्भुत परिणाम होता है। ऊं का सन्धिविच्छेद दो प्रकार से होता है : (१) अ उ म्, (२) अ अ आ उ म् । प्रथम विकल्प के जप में 'अ' का उच्चारण करते समय पेडू पर लाल रंग, 'उ' का उच्चारण करते समय हृदय पर नील रंग और 'म' का उच्चारण करते समय आज्ञाचक्र पर सफेद रंग का चिन्तन करना चाहिए। दूसरे विकल्प का जप-मंत्र है-अ सि आ उ सा। इनके धारणा-स्थान और रंग-चिन्तन इस प्रकार हैं : स्थान नाभि-कमल सफेद सि : मस्तक-कमल लाल आ मुख-कमल पीला हृदय-कमल हरा सा : कण्ठ काला सोहम् 'हकार' के उच्चारण से प्राणवायु बाहर निकलता है। 'सो' के उच्चारण से प्राण-वायु अन्दर प्रवेश करता है । 'सो' का कण्ठचक्र पर, 'ह' का आज्ञाचक्र पर और 'म्' का सहस्रार चक्र पर ध्यान करना चाहिए। इस का जप प्रातःकाल, मध्याह्न और रात को इन तीनों समयों में करना चाहिए। प्रारम्भ में जप पांच मिनट तक करना चाहिए। प्रति सप्ताह दोदो मिनट बढ़ाते हुए पन्द्रह मिनट तक पहुंच जाना चाहिए । इस प्रक्रिया से अन्तर्मन जाग्रत होता है। चक्र का अर्थ है चेतना के केन्द्र-स्थान । वे सात माने जाते हैं। उनके नाम हैं : चक्र दल स्थान १. मूल चार गुह्य-देश और लिंग-मूल के मध्य २. स्वाधिष्ठान छह बार मुख-देश और लिंग-भूल के मध्य लिंग-मूल Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003076
Book TitleTat Do Pravah Ek
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1967
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size5 MB
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