________________
योग । ६१
कार्यों में सूर्य स्वर और अग्नि-तत्त्व । पृथ्वी और जल तत्त्व आरोग्यकारक
और सफलता के हेतु होते हैं। वायु और आकाश तत्त्व आरोग्यकारी किन्तु शुभ कार्यों के लिए अनुपयुक्त होते हैं । सूर्य-स्वर में अग्नि और वायु तत्त्व उत्तम होते हैं । चन्द्र-स्वर और जल तत्त्व प्रवहमान हो तो ज्वर-निवृत्ति होती है। चन्द्र-स्वर में जल तत्त्व चले तो शरीर में प्रविष्ट स्थावर जंगम विष दूर होता है। पृथ्वी तत्त्व की अधिकतासे यकृत-सम्बन्धी रोग दूर होते
पृथ्वी
4.
बीज १. पृथ्वी : लं : सोम-बुद्ध : २. जल : वं : मंगल-शुक्र : अग्नि ३. तेजस् : हं : गुरु : वायु ४. वायु : यं : शनि-रवि : जल ५. आकाश :
सूर्योदय के समय ये तत्त्व चलते हैं
तो शरीर को निरोग समझना चाहिए। तत्त्व की पहचान
सर्वेन्द्रिय गोपन मुद्रा करने पर जिस रंग का बिंदु दीखे, वही तत्त्व प्रवहमान समझना चाहिए। अभ्यास-काल में जो तत्त्व प्रवहमान हो, उसके बीज मंत्र का जप करना चाहिए। काम, क्रोध, भय आदि से तत्त्व के आन्दोलन में न्यूनाधिकता होती है। उससे तत्त्व विषम हो जाते हैं। तत्त्व की विषमता से रोग उत्पन्न होते हैं । क्रोध से अग्नि तत्त्व प्रधान हो जाता है, मोह से जल तत्त्व और भय से पृथ्वी तत्त्व-रोग का अर्थ है तत्त्व-वैषम्य और आरोग्य का अर्थ है तत्त्व-साम्य । लोम-विलोम प्राणायाम से तत्त्व-वैषम्य दूर होता है। चक्र और तत्त्व मूलाधार चक्र
पृथ्वी तत्त्व स्वाधिष्ठान चक्र
जल तत्त्व मणिपूर चक्र
तेजस् तत्त्व अनाहत चक्र
वायु तत्त्व विशुद्ध चक्र
आकाश तत्त्व
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org