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व्यक्तिवाद अपने अभिप्रायोंको ही सोलह आना सही मान उन्हें दूसरोंपर लादनेकी प्रवृत्ति बढ़ रही है, वह सामाजिक
भलाईके नामपर व्यक्तिवादी मनोवृत्तिका विस्तार है । व्यक्ति-स्वातन्त्र्यकी बात सूझी है, पर यह जाल है। इसमें फंसना सहज है, निकलना कठिन ।
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भाव और अनुभाव
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