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अनेक और एक तुम शाखाओंकी अनेकता देख चिन्तित मत होओ। तुम देखो उनका मूल एक है। अनेकताका अर्थ विरोध ही नहीं होता, विकास भी होता है। तुम दूध और पानीकी एकता देख हर्षित मत होओ। इनका मूल एक नहीं है । एकताका अर्थ संवर्धन ही नहीं होता, शक्तिका अल्पीकरण भी होता है ।
दीन व्यक्तियोंको देखकर दीन होनेवाले कितने हैं, परन्तु वे विरले हैं, जो दोनोंका उद्धार करें।
भाव और अनुभाव
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