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अखण्ड व्यक्तित्व
वहाँ सारो भाषाएँ मूक बन जाती हैं, जहाँ हृदयका विश्वास बोलता है । जहाँ हृदय मूक होता है वहाँ भाषा मनुष्यका साथ नहीं देती । जहाँ भाषा हृदयको ठगनेका यत्न करती है वहाँ व्यक्तित्व विभक्त हो जाता है । अखण्ड व्यक्तित्व वहाँ होता है जहाँ भाषा और हृदय में द्वैध नहीं होता ।
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भाव और अनुभाव
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