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अश्रुवीणा / ७९
दिवसोऽनुमित्रमगम विलयम् - शिशुपालवध 9.17 विलयं नाशमगमत् - टीका
जगाम - गम् धातु लिट् लकार प्रथम पुरुष, एकवचन।
महति सुकृते- महान् सुकृत (सुकर्म) के उदय होने पर। सुकृत=पुण्य । स्याद्धर्ममस्त्रियां पुण्यश्रेयसी सुकृतं वृषः - अमर. 1.4.24
सुकृते पावने धर्मे-हैम० 2.375
सुष्ठु कृतम् सुकृतम्। प्रादि समास कुगति प्रादयः (पा.2.2.18) से हुआ है। सुकृतं तु शुभे पुण्ये क्लीबं सुविहिते त्रिषु. मे. 67.172
व्यूढ श्रद्धा - दृढ़ श्रद्धा से युक्त, व्यापक श्रद्धा सम्पन्न। चन्दनबाला का विशेषण। व्यूढ का अर्थ विकसित, विशाल, दृढ़ आदि है । विशाल और दृढ़ के अर्थ में रघुवंश महाकाव्य 1.13 में व्यूढोरस्को. प्रयुक्त है। विशेषेणोह्यते स्म । वह-प्रापणे धातु सेक्त प्रत्यय हुआ है। व्यूढ संहत विन्यस्ते पृथुलेऽप्यविधेयवत् (मे. 44.4)
नूनम् - अव्यय । असंदिग्ध रूप से, विश्वस्त रूप से, निश्चय ही, अवश्य निस्संदेह आदि अनेक अर्थ होते हैं। पूरी संभावना के अर्थ में भी इसका प्रयोग देखा जाता है । क्या आज भी सर्वस्वसमर्पिता चन्दन बाला की परीक्षा शेष है? - अद्यापि परीक्ष्या। यहाँ अर्थापत्ति अलंकार है।
भक्त्यादेशा - भक्ति का सलाह जिसे दिया जा सकता है । केवल भक्ति ही जिसके पास अवशिष्ट है । आदेश =आज्ञा, सलाह, निर्देश, उपदेश, नियम, संकेत।
भक्ति - सेवा, श्रद्धा, प्रभु में अनन्य समर्पण प्रभु के साथ एकनिष्ठभाव। विस्तृत जानकारी के लिये देखें डा. हरिशंकर पाण्डेय कृत 'भक्तामर सौरभ' नामक ग्रन्थ।
प्रकृति कृपणा- स्वभाव से दीन, विवेक रहित। प्रकृत्या कृपणा। विपत्ति की बेला में व्यक्ति विवेकहीन हो जाता है। वह संज्ञान से रहित हो जाता है। चन्दनबाला की भी यही दशा है। महाकवि कालिदास का यक्ष प्रकृति कृपण है-कामार्ता हि प्रकृतिकृपणाश्चेतनाचेतनेषु । मेघदूत 1.5।
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