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अश्रुवीणा / ५५
स्वभावतः श्रेष्ठ स्वीकृत हो जाता है और जिसके प्रति श्रद्धा नहीं है वह निकृष्ट हो जाता है।
ते संयोगात् – हे श्रद्धे ! तव संयोगात् - समन्वयात् संगमात् वा = तुम्हारे संगम से, संयोग से।
नरः पामरम् अमरेन्द्रम् अनुभवति - मनुष्यः निकृष्टमपि श्रेष्ठं जानाति - अर्थात् श्रद्धावशात् व्यक्ति निकृष्ट को भी श्रेष्ठ मान लेता है। पामर = दुष्ट, नीच, गँवारू। अमरकोशकार ने नीच के वाचक अर्थ में पामर शब्द को निर्दिष्ट किया है -
विवर्णः पामरो नीचः प्राकृतश्च पृथग्जनः। निहीनोऽपसदो जाल्मः क्षुल्लकश्चेतरश्च सः॥
अमरकोश 2.10.16 पामर शब्द का द्वितीय एकवचन में पामरम् बना है - पामानं राति पामरः अर्थात् जो पाप अथवा दुष्टता को धारण करता है वह पामर है।
पा धर्म: म्रियते येन अर्थात् जिसके द्वारा धर्म मारा जाता है, धर्म की हत्या की जाती है वह पामर है । पा उपपद पूर्वक मृप्राणत्यागे धातु से घ (अ) प्रत्यय होकर पामर बना है। द्वितीया एकवचन में पामरम्। भामिनी विलास 1.62 में जड़बुद्धि को पामर कहा गया है- वल्गंति चेत्पामराः।
अमरेन्द्रम् - देवेशम् इन्द्रम् विष्णुं सर्वपूज्यम् वा। अमरेन्द्र शब्द का द्वितीया एकवचन। अमरेन्द्र = देवों का स्वामी, इन्द्र की उपाधि, विष्णु और शिव की उपाधि।
अनुभवति = स्वीकरोति मनुते वा। स्वीकार करता है, अनुभव करता है।
ते व्याघात् प्रवरचतुरमपि अनादेयवाक्यम् भवति -- श्रद्धायाः निराशात् विरोधात् असमन्वयात् अभावात् वा कुशल प्रवीणमपि अनादेयवाक्यम् - विश्वासायोग्यवचनम् भवति । श्रद्धायाऽभावे सति कुशलप्रवीणचतुराणां वचस्यपि न विश्वसिति जनः।
व्याघात - विरोध, रुकावट, विघ्न । व्याघात शब्द के पंचमी एकवचन में 'व्याघातात्' बना है। विलगाव या विच्छेदन होने से पंचमी विभक्ति हुई है।
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