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अश्रुवीणा / ४९
किया है - 1.46 कालिदास ने भोलीभाली तपस्वी कन्याओं के लिए लिखा है - मुग्धासु तपस्विकन्यासु - शकुन्तला 1.25 ।
भद्रान् – भद्र का अर्थ है - भला, सुखद, अनुकूल, मंगलप्रद, कृपालु, सुहावना आदि। यह 'शिशून्' का विशेषण है जो बच्चों में विद्यमान गुणों का उद्घाटन कर रहा है।
भद्रं कल्याणं मंगलं शुभम् - अमरकोश - 1.4.25 भदि कल्याणे धातु से (भ्वादिगणीय, आत्मनेपद) ऋजेन्द्राग्रवज्रवि विप्रकुब्रचुब्र क्षुर खुर भद्र. (उणादि सूत्र संख्या 196) सेरन के निपातन से भद्र बनता है। इस पद से शिशुओं में भद्रता कल्याणकारी, द्वेषरहितता आदि गुणों का द्योतन हो रहा है।
अज्ञान् - अज्ञ शब्द का द्वितीया बहुवचनान्त प्रयोग। ज्ञानरहितान् अनुभवविहीनान् । शिशून् का विशेषण। यहाँ अज्ञ शब्द से सांसारिक प्रपंच के ज्ञान का अभाव अभिव्यंजित है। जो सांसारिक प्रपंचों के ज्ञान से रहित हैं। मनुस्मृति 2.152 में बाल को अज्ञ कहा गया है - अज्ञो भवति वै बालः । भतृहरि ने अजान, अनसमझ के अर्थ में अज्ञ शब्द का प्रयोग किया है - अज्ञः सुखमाराध्यः नीतिशतक - 20।
वचसि निरतान् – वाणी पर विश्वास करने वाले। निरत शब्द भक्त, आसक्त, अनुरक्त, संलग्न आदि अर्थों का वाचक है। जो सहज रूप से किसी की वाणी में ननुनच (तर्क-वितर्क) किए बिना विश्वास कर लेते हैं। शिशून् का विशेषण।
तर्कबाणैरदिग्धान् – तर्क के बाणों से अदिग्ध, अस्पृष्ट ।
अदिग्ध – अलिप्त । अदादिगणीय दिह उपचये धातु से क्त प्रत्यय होकर दिग्ध शब्द बनता है। लिप्त का पर्याय है।
दिग्धलिप्ते - अमरकोष 3.1.90 । विष में सने हुए बाण के अर्थ में भी दिग्ध शब्द का प्रयोग होता है - विषाक्ते दिग्धलिप्तकौ, अमर. 2.8.83 दिग्धो विषाक्तबाणेस्यात्पुंसि लिप्तऽन्यलिंगक :- मेदिनी 79.7
तर्क- कल्पना, अंदाज, चर्चा, सन्देह ।जो तर्क के बाणों से, सन्देह के बाणों से अलिप्त, असंपृक्त हैं।
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