________________ 170 / अश्रुवीणा अनुवाद-जिसकी सुविहितगण तेरापंथ मातृभूमि है, (जो तेरापथ) विमलमति वाले भिक्षु आदि आचार्यों के द्वारा प्रकर्ष को प्राप्त हुआ है / कालुगणि के जिस अंकुर को प्रवर तुलसी ने फल युक्त बनाया वह मैं मुनि नथमल ने काव्य लीला (काव्य विरचना) की। व्याख्या-इसमें कवि ने अपनी उदात्त परम्परा का परिचय दिया है। सुन्दर गण तेरापंथ कवि की जन्मस्थली है / मातृभूमि है। कवि का नाम मुनि नथमल है, जो कालुगणि से दीक्षित होकर प्रवर तुलसी के आश्रम में बढ़ा / इस श्लोक में कवि की श्रद्धाशीलता उद्घाटित है। परिकर अलंकार, उदात्त अलंकार का सुन्दर उदाहरण है। लीला=विनोद, आनन्द। काव्यलीलाम्-काव्यानन्दम् / काव्यानन्द को। रोह-अंकुर। देवसुन्दरी व्याख्या से सम्पूर्णा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org