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________________ (६४) बोद्धं नालं स्वमतिरचिते जीवनस्याध्वनीह, गर्ताः शैलाः कति च कति वा मोटनानि भ्रमा वा। अन्यं कञ्चित् व्रजति तनुमानेकमुल्लध्य पूर्व मावर्त तद् भवति सहसा विस्मृतिः प्राक्तनस्य॥ अन्वय-इह स्वमतिरचिते जीवनस्य अध्वनि कति गर्ताः शैला: कति च मोटनानि भ्रमा वा न बोर्बु अलम् । तनुमान एकम् आवर्तम् उल्लंडघ्य अन्यं कञ्चित् व्रजति तद् प्राक्तनस्य सहसा विस्मृतिः भवति। अनुवाद-अपनी ही मति से रचित इस जीवन मार्ग में कितने गर्त (गड्ढे) पर्वत और कितने घुमाव और चक्कर (भंवर) हैं, इसे नहीं जान सकते हैं। मनुष्य एक चक्कर (भँवर) को लांघकर अन्य किसी दूसरे चक्कर में पहुँच जाता है। उस समय (दूसरे चक्कर में जाने पर) पहले की सहसा विस्मृति हो जाती है। (भूल जाता है।) व्याख्या-जीवन-यात्रा का व्यावहारिक चित्र कवि ने प्रस्तुत किया है। स्वभावोक्ति अलंकार। अध्वनि-मार्ग में। मोटनानि-मोड़। भ्रमा भंवर, चक्र। तनुमान व्यक्ति आवर्तम् चक्कर। व्रजति=जाता है। प्राक्तन-पूर्व। सहसा अचानक, उसी समय। (६५) प्रत्येकस्मिन् नियतमुभयोः पार्श्वयोःसन्ति कुम्भाः, के चित् पूर्णाः प्रवरसुधया हालया भूरयस्तु । हालोन्मत्ताः प्रथमचरणे ह्यन्यपाश्र्वानपेक्षा, द्वैतीयीकं नयनममलं हन्त नोन्मीलयन्ति ॥ अन्वय-प्रत्येकस्मिन् (पथि) उभयोः पार्श्वयोः कुम्भाः नियतम् सन्ति । केचित् प्रवरसुधया पूर्णाः भूरयस्तु हालया। हालोन्मत्ताः प्रथमचरणे अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003074
Book TitleAshruvina
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size7 MB
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