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________________ १२० / अश्रुवीणा भगवान् में लगा दिया। फिर भी वह भगवान् मेरे ऊपर दया युक्त होंगे अथवा नहीं। क्योंकि अपेक्षा रखने वालों का संसार अलग होता है निरपेक्षों का अलग। व्याख्या- स्त्री के स्वभाव का सुन्दर वर्णन महाकवि ने किया है। महिला जगत् अपनी प्रकृतिमृदुता, श्रद्धा की पवित्रता, हृदय की स्पष्टता आदि के लिए प्रसिद्ध है। ये सब स्त्री के धन हैं। इस परे धन को चन्दना ने भगवच्चरणों में समर्पित कर दिया, फिर भी भगवान् की कृपा होगी अथवा नहीं भी हो सकती है।क्योंकि सापेक्ष आसक्त जनों का संसार अलग होता है ।निरपेक्ष-अनासक्तजनों का संसार अलग होता है। इस श्लोक में अर्थान्तरन्यास अलंकार है। अनुक्रोश-दया, करुणा। (४७) ईषत् स्पृष्ट्वा रविरपि नभस्तेजसा हि प्रयाति, क्वैति स्थैर्य दिशि-दिशि लषन् विद्युदालोक एषः। मूढानज्ञांस्तिमिर पतितानुद्धरेत्तादृशः कः, प्रारम्भोत्का जगति वहवोऽल्पेहि निर्वाहकाः स्युः॥ अन्वय- तेजसा नभ ईषत् स्पृष्ट्वा रविरपि प्रयाति। एष विद्युतालोकः दिशिदिशि लषन् स्थैर्यम् क्वैति । मूढान् अज्ञान् तिमिरपतितान् उद्धरेत् एतादृशः कः। हि जगति प्रारम्भोत्का बहवः निर्वाहकाः अल्पे स्युः। अनुवाद- अपने प्रकाश से आकाश को थोड़ा-सा स्पर्श कर सूर्य भी चला जाता है। यह विद्युत प्रकाश दिशाओं को आलोकित करता (समाप्त हो जाता है), स्थैर्य (स्थिरता) कहाँ चला जाता है । मूढ, अज्ञ और घोर अन्धकार में गिरे हुए लोगों का उद्धार करे, ऐसा कौन है। क्योंकि संसार में कार्यारम्भ में बहुत व्यक्ति उत्साह दिखाते हैं (लालायित रहते हैं) लेकिन अन्त तक निर्वाहक अल्प ही होते हैं। ___ व्याख्या- संसार में अधिकांश यह देखा जाता है कि किसी कार्य के आरम्भ में बहुत व्यक्ति लालायित होते हैं, उत्साह दिखाते हैं लेकिन थोड़े समय बाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003074
Book TitleAshruvina
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size7 MB
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