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________________ अश्रुवीणा । ११९ व्याख्या- चन्दना अपने दूत के गमन के लिए मंगल कामना करती है। कभी भी विपरीत परिस्थिति तुम्हें प्राप्त न हो ऐसा आशंसा करती है। मेघदूत का यक्ष मेघ से कहता है कि कभी भी मेरी जैसी विपरीत अवस्था (प्रियतमा-विरहित अवस्था) को प्राप्त मत करना मा भूदेवं क्षणमपि च ते विद्युता विप्रयोगः-मेघ. 2/55 भद्र-कल्याण। प्रतीप:-विपरीत, वात:-पवन, प्रावृषेण्या-वर्षा ऋतु में उत्पन्न, अभिनिवघना-नए मेघ । घनाः बादल। आशादीपाः = आशा के दीपक। कार्य-सफलता के अमोघ सूत्र महाकवि ने इस श्लोक में बताया है। जिसके आशा का दीपक हो, निर्विघ्न आमंत्रणप्रार्थना हो और वरसाकालीन अभिनव मेघ हो तो विपरीत पवन की स्मृति कौन करता है? अर्थात् कोई नहीं। कैमुतिक न्याय से यहाँ अर्थापति अलंकार है। आशादीप में रूपक अलंकार है। प्रावृषेण्या अभिनवघना-परिकर। हवा आवाहन, प्रार्थना। (४६) श्रद्धाश्रूणि प्रकृतिमृदुता मानसोद्घाटनानि, निःश्वासाश्चाखिलमपि मया स्त्रीधनं विन्ययोजि। सानुक्रोशो मयि परमतः सैष भावी नवेति, सापेक्षाणामपरमपरं स्याज्जगत्तत्परे षाम् ॥ अन्वय- श्रद्धाश्रूणि प्रकृति मृदुता मानसोद्घाटनानि निःश्वसाश्च अखिलम् अपि स्त्रीधनम् मया विन्ययोजि । परमत: सैष मयि सानुक्रोशो भावी न वेति। सापेक्षाणाम् अपरम् परेषाम् च अपरम् जगत् स्यात् । । अनुवाद- श्रद्धा के आँसू, स्वाभाविक कोमलता, हृदय का उद्घाटन और निःश्वास (आहे) ये स्त्रियों के सम्पूर्णधन (सबकुछ) हैं। (इन्हें भी) हमने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003074
Book TitleAshruvina
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size7 MB
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