________________
अश्रुवीणा / ८९ अनुवाद- जितना ही श्रद्धायुक्त (श्रद्धालु) जनों का मन (हृदय) कोमल होता है उतना ही श्रद्धा पात्र व्यक्तियों के साथ रूक्षता का भाव बढ़ता है । भरपूर जल से झुका हुआ मेघ ग्रीष्मार्त लोगों के साभिप्राय (आशायुक्त) एवं स्नेह पूर्ण नेत्र को निर्दयतापूर्वक शीघ्र ही लाँघ जाता है (ग्रीष्मार्तों की इच्छा की पूर्ति नहीं करता है।)
व्याख्या- दृष्टांत अलंकार के द्वारा कवि ने श्रद्धालु और श्रद्धापात्र व्यक्ति के स्वरूप को उद्घाटित करता है। इसमें यह भी अभिव्यंजित है कि देश, काल, समय, भाव आदि सभी उपादानों एवं निमित्तों के पूर्ति के बिना कार्य सम्पन्न नहीं होता है। मेघ का दृष्टान्त दिया गया है । उपमेय वाक्य उपमान वाक्य तथा उनके साधारण धर्मों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव होता है वह दृष्टान्त अलंकार होता हैदृष्टान्तः पुनरेतेषां सर्वेषां प्रतिबिम्बनम्-काव्यप्रकाश 10.102
श्रद्धाभाजाम्-श्रद्धाभाज् शब्द का षष्ठी बहुवचन। श्रद्धालु। भक्त का विशेषण।
मसृणम्-कोमल । चिक्कणं मसृणं स्निग्धम्-अमरकोश 2.9.46 मसृणोऽकर्कशे स्निन्धे-विश्वकोश 51.45 मेदिनी 50.70।
मसृण शब्द का साभिप्राय प्रयोग है। विशेषण एवं पर्याय वक्रता का उत्कृष्ट उदाहरण है। मसी परिणामे धातु से बाहुलकात् ऋण प्रत्यय करने से मसृण बनता है। जिसके क्रोध अहंकार आदि भाव परिणमित हो गए हैं वह मसृण है । सम पूर्वक ऋणु गतौ से क प्रत्यय तथा पृषोदरादीनि यथोपदिष्टम् (पा. 6.3.109) से सम् का वर्णविपर्यय-मस्+ऋण+क(अ) मसृण बना है। जो सम्यक् रूप से अपने सहज भाव में गमन करने लगता है वह मसृण है। भक्त हृदय का सुन्दर विशेषण।
घनरसनतः = अधिक जल से झुका हुआ अम्भोवाहो का विशेषण अम्भोवाह- मेघ।
साशयानि स्नेहपूर्णेक्षणानि - आशय युक्त स्नेहपूर्ण नेत्रों को। ग्रीष्म काल में ग्रीष्म से पीड़ित जीव जाति, मेघ की तरफ स्नेह पूर्ण एवं आशा से कि मेघ जल देगा, आँखें लगाए रहती हैं, लेकिन वह मेघ कहाँ इच्छापूर्ति करता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org