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महामंत्र : ४३
चौथी रानी को मेरी जरूरत थी। उसे मैं मिल गया। साथ-साथ मेरा जो कुछ है वह उसे सहज मिल गया है। ___ व्यक्ति बहुत छोटी-छोटी मांगें करता है। उसे छोटा मिलता है। किन्तु जब मांग बहुत बड़ी होती है तो छोटी मांगे स्वयं मिल जाती हैं।
यह नमस्कार मंत्र महामंत्र इसलिए है कि इसके साथ कोई मांग जुड़ी हुई नहीं है। उसके पीछे कोई कामना नहीं है। इसके साथ केवल जुड़ा हुआ है-आत्मा का जागरण, चैतन्य का जागरण, आत्मा के स्वरूप का उद्घाटन और आत्मा के आवरणों का विलय। जब इतनी बड़ी मांग होती है, जब आत्म साक्षात्कार और परमात्मा बनने की मांग पूरी होती है तब सहवर्ती अनेक उपलब्धियां स्वयं आ जाती हैं। जिस व्यक्ति को परमात्मा उपलब्ध हो गया, जिस व्यक्ति को आत्म-जागरण उपलब्ध हो गया, उसे सब कुछ उपलब्ध हो गया। कुछ भी शेष नहीं रहा।
नमस्कार महामंत्र के साथ कोई छोटी मांग जुड़ी हुई नहीं है, उसके साथ जुड़ा हुआ है केवल चैतन्य का जागरण। सोया हुआ चैतन्य जाग जाए। सोया हुआ प्रभु, जो अपने भीतर है , वह जाग जाए। अपना परमात्मा जाग जाए। जहां इतनी बड़ी स्थिति होती है वहां सचमुच वह मंत्र महामंत्र बन जाता है।
नमस्कार महामंत्र के पांचों पदों में पांच आत्माएं जुड़ी हुई हैं। कोई अल्प शक्ति जुड़ी हुई नहीं है। विश्व की पांच महाशक्तियां इसके साथ जुड़ी हुई हैं। केवल आत्मा और केवल परमात्मा इसके साथ जुड़ा हुआ है। अर्हत् परमात्मा है, सिद्ध परमात्मा है। आचार की गंगा में अवगाहन करने वाले और ऐसे नंदनवन में रहने वाले जिनके आसपास सौरभ फूटता है, वे परम आत्मा का जागरण करने वाले आचार्य इसके साथ जुड़े हुए हैं। वे उपाध्याय इसके साथ जुड़े हुए हैं जो समग्र श्रुतराशि का अवगाहन कर ज्ञान का आलोक विकीर्ण करते हैं। इसके साथ जुड़े हुए हैं वे साधु या साधक जो आत्मा के समस्त आवरणों को दूर कर, परमात्मा से साक्षात्कार करने का सतत उपक्रम कर रहे हैं। विश्व की सारी पवित्र आत्माएं किसी संप्रदाय की नहीं, किसी धर्म विशेष की नहीं, किसी जाति की नहीं, सबकी हैं, वे सब इसके साथ जुड़ी हुई हैं।
नमस्कार के महामंत्र होने का दूसरा हेतु यह है कि यह एक मार्ग है।
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