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परिशिष्ट : १४७
ॐ णमा आयारयाण-कण्ठ । ॐ णमो उवज्झायाणं-मुख ॐ णमो लोए सव्वसाहूणं-मस्तक सर्वांगेषु मां रक्ष-रक्ष हिलि-हिलि मातंगिनी स्वाहा।
जो साधक दूरश्रवण आदि लब्धियों को प्राप्त करना चाहता है, वह
सप्ताक्षरी मंत्र ‘णमो अरहंताणं' को सात मुख छिद्रों में स्थापित करे• दो कान—ण मो • नथुने-अर • दो आंखें--हं ता • एक मुखणं।
इस मंत्र-जाप से चक्षु आदि की सीमा से बाहर वाले रूप भी प्रत्यक्ष होते हैं।
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