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परिशिष्ट : १४३
नील प्रियंगु जैसा। श्याम अञ्जन जैसा ।)
वर्ण-युक्त अक्षर का चिन्तन करें। वह कम से कम दो-तीन फुट बड़ा हो। मन को स्थिर करें। मन की आंख से देखें। मन शांत और स्वस्थ होगा तो अक्षर की आकृति स्पष्ट दिखने लगेगी; अन्यथा अक्षर का रंग और आकृति बदल जाएगी।
प्रत्येक अक्षर पर २०-३० सेकण्ड, फिर बढ़ाते जाएं।
एक के बाद दूसरे अक्षर को स्मृति-पटल पर लाने की कुशलता प्राप्त करें। यह निरन्तर अभ्यास से सध सकेगी।
निरंतर अभ्यास करने से प्रत्येक अक्षर की सुन्दर आकृति प्रत्यक्ष होने लगेगी। मन वहां स्थिर होगा। फिर धीरे-धीरे अक्षर मे से किरणें फूटने लगेंगी और सारे अक्षर ज्योतिर्मय बन जाएंगे।
प्रयुक्त विधि
रात्रि का चौथा प्रहर। साधक पर्वत के शिखर पर स्थित है। अनन्त नीला आकाश। श्वेत वर्ण वाला 'ण' उभर रहा है। बहुत लम्बा-चौड़ा। फिर क्रमशः—'मो अ र हं ता णं'-अक्षर श्वेत वर्ण में इसी प्रमाण में एक-एक कर उभर रहे हैं। अरुणोदय हो गया है। बाल-सूर्य के वर्ण वाले पांचों अक्षर'णमो सिद्धाणं'—उभर रहे हैं। • सूर्योदय हो चुका है। सूर्य आकाश के मध्य में स्थित है। मध्याह्न की
वेला है। पीत वर्ण में ‘ण मो आ य रि या णं'—ये सात अक्षर उभर रहे हैं। प्रत्येक का प्रत्यक्षीकरण । सायंकाल का समय आ गया है। अंधकार प्रसृत हो रहा है। नील वर्ण में ‘ण मो उ व ज्झा या णं'-का चिन्तन किया जाए। रात्रि बीत रही है। मध्यरात्रि का समय। श्याम वर्ण में..'ण मो लो ए स व्व सा हू णं' का चिन्तन किया जाए।
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