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परिशिष्ट : १३६
प्रयोजन १. णमो अरहंताणं-आवरण-मूर्छा और अन्तराय को क्षीण-उपशांत
करने के लिए। २. णमो सिद्धाणं—शाश्वत आनन्द की अनुभूति के लिए। ३. णमो आयरियाणं-बौद्धिक चेतना की सक्रियता के लिए। ४. णमो उवज्झायाणं-मानसिक शांति और समस्या समाधान के
लिए। ५. णमो लोए सव्वसाहूणं-कामवासना को क्षीण-उपशांत करने के
लिए।
नव-पद-ध्यान १. अष्ट दल कमल । कर्णिका में ‘णमो अरहंताणं '। शेष चार दिशाओं की चार पखुड़ियों में चार पद (णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं) स्थापित करें। चार विदिशाओं की पंखुड़ियों पर चार पत (एसो पंच णमोक्कारो, सव्व पावनप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं) स्थापित करें। ___ अथवा विदिशा वाली पंखुड़ियों में----णमो दंसणस्म, णमो णाणस्स, णमो चरित्तस्स, णमो तवस्स -इन चार पदों को स्थापित करें।
'ॐ' के बिना नौ पदों का स्मरण करना चाहिए। अथवा
चार दल वाले कमल के बीच ‘णमो अरहंताणं' तथा चार दलों में शेष चार पदों का स्मरण करना चाहिए। इसे 'अपराजित मंत्र' कहा जाता है।
फल-पाप का क्षय। २.० णमो अरहंताणं
ज्ञानकेन्द्र में ० णमो सिद्धाणं
ललाट में ० णमो आयरियाणं
दाएं कान मे ० णमो उवज्झायाणं ग्रीवा और सिर के सन्धि भाग में ० णमो लोए सव्वसाहूणं बाएं कान के पीछे।
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