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१३८ : एसो पंच णमोक्कारो
चौथा चरण अपने उपाध्यायस्वरूप का ध्यान करें। शरीर के कण-कण में नीले आकाश (महाशून्य) का अनुभव करें।
णमो लोए सबसाहूणं शक्ति केन्द्र में मन का केन्द्रीकरण और कस्तूरी जैसा श्याम वर्ण ।
पहला चरण अक्षर-ध्यान । आकाश में श्वास द्वारा श्याम वर्णवाला 'ण' लिखें और उसे साक्षात् करने का अभ्यास करें। इसी प्रकार ‘मो', 'लो', 'ए', 'स' 'व्व' 'सा' 'हू', 'णं'-एक-एक वर्ण लिखें और उसे साक्षात् करने का अभ्यास करें।
दूसरा चरण पद-ध्यान । ‘णमो लोए सव्वसाहूणं'—इस पूरे पद का ध्यान करें। आकाश में श्वास द्वारा लिखे गये इस पूरे पद को साक्षात् देखने का अभ्यास करें। तीसरा चरण पद के अर्थ का ध्यान । ‘णमो लोए सव्वसाहूणं'—इस नवाक्षरी मंत्र का अर्थ है—लोक के समस्त साधुओं को नमस्कार । साधु का ध्यान श्याम-बिंदु के रूप में करें। ___ श्यामबिंदु के साक्षात्कार का अभ्यास करें। चौथा चरण अपने साधु स्वरूप का ध्यान करें। शरीर के कण-कण में श्यामबिंदु का अनुभव करें।
दूसरा प्रकार मुनि का ध्यान शक्ति केन्द्र के स्थान पर ‘पादपीठ' पर भी किया जाता है। शेष सब पूर्ववत् ।
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