________________
१२४ : एसो पंच णमोक्कारो
चित्त की एकाग्रता की बात सध सकती है ?
उत्तर--बहुत टेढ़ा प्रश्न है। एक बच्चा पहले दिन चलना शुरू करता है। हम निश्चित मानते हैं कि जब तक पैरों में वह शक्ति नहीं होती, वह नहीं चल सकेगा और यह भी मानते हैं कि जब तक वह नहीं चलेगा, उसके पैरों में शक्ति नहीं आएगी। दोनों बातें साथ-साथ हैं। इसका एक ही उपाय है कि बच्चा लड़खड़ाता है तो उसे अंगुली का सहारा देकर चलाएं। लड़खड़ाने दें, कोई निराशा की बात नहीं है। प्रारंभ में इसे नहीं रोका जा सकता। धीरे-धीरे बच्चा चलना सीख जाएगा। पैरों में शक्ति का संचार हो जाएगा। इसी प्रकार ध्यान का अभ्यास करें, संकल्प-विकल्प आएंगे। आने दें, कोई चिन्ता न करें, किन्तु संकल्प को दृढ़ बनाए रखें, 'मुझे ध्यान करना ही है।' थोड़ा लड़खड़ाएंगे तो संकल्प भी बढ़ेगा। जब संकल्प बढ़ेगा तो शक्ति भी बढ़ेगी। एक बिन्दु ऐसा आएगा कि संकल्प बहुत दृढ़ हो जाएगा, इन्द्रियों की ताकत भी बढ़ जाएगी, किन्तु हम उन पर संकल्पशक्ति से नियन्त्रण पा लेंगे, उनको जीत लेंगे। लड़खड़ाना और चलना—दोनों में समझौता हो । डरें नहीं, निराश न हों। बीच में समझौता न तोड़ें। विजय हमारी होगी। युद्ध की पूरी तैयारी होने पर यदि समझौता तोड़ा जाता है तो कोई बात नहीं, अन्यथा हार निश्चित है। इसी रण-नीति पर हम चलें। अभी समझौता करके चलें और जब यह लगे कि युद्ध की पूरी तैयारी हो गई है तव रणभेरी बजा दें, फिर कोई चिन्ता नहीं है।
प्रश्न-शरीर और मन की बीमारी से हम परिचित हैं, किन्तु प्राण की वीमारी क्या होती है ? ___उत्तर—हमारे शरीर में जब विद्युत् का संतुलन बिगड़ जाता है तब अनेक बीमारियां उत्पन्न होती हैं। मेग्नेट थेरापी और एक्यूपंक्चर थेरापी---इन दोनों में मुख्यतः इसी विषय पर ध्यान दिया गया है। बीमारियां विद्युत् के असंतुलन से पैदा होती हैं। मेग्नेट थेरापी में चुम्बक का प्रयोग इसीलिए किया जाता है कि अस्त-व्यस्त विद्युत् पुनः स्थान पर आ जाए। विद्युत् का संतुलन स्थापित होते ही बीमारी समाप्त हो जाती है। एक्यूपंक्चर में सूइयों का प्रयोग करते हैं और उनके माध्यम से विद्युत् को संतुलित किया जाता है। तैजस शरीर के स्तर पर जो बीमारियां प्रकट होती हैं, वे हमारे शरीर की प्राणशक्ति या विद्युत् शक्ति को अस्त-व्यस्त कर देती
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org