________________
१२२ : एसो पंच णमोक्कारो
होगा कि कितनी विचित्र ध्वनियां हो रही हैं। भीतर ध्वनियां ही ध्वनियां हो रही हैं, प्रकंपन ही प्रकंपन है। सारा आकाश ध्वनियों से भरा पड़ा है। उन्हें पकड़ने का साधन चाहिए।
दर्शन की शक्ति के द्वारा, ज्ञान की शक्ति के द्वारा, हमारे शरीर में होने वाली ध्वनियों को सुनना तथा प्राणशक्ति या शब्द का उसके साथ अनुभव करना--यह है मंत्र की साधना ।
आलंबन और देखने में कोई अन्तर नहीं है
प्रश्न—विशिष्ट उपलब्धि साधना के विकास के द्वारा की जा सकती है या विस्फोट के द्वारा ?
उत्तर-विकास और विस्फोट में कोई अन्तर नहीं है। विकास का अर्थ है—खुलना, चौड़ा होना । फूल विकसित होता है अर्थात् खुल जाता है । विस्फोट का अर्थ है—जो शक्ति एकत्रित पड़ी है, उसका खुल जाना। बिना विस्फोट हुए विकास नहीं होता। संस्कृत कोश में विकास और विस्फोट पर्यायवाची माने गए हैं। फूल का विस्फुटन होना ही विकसन होना है। विस्फोट हुए बिना विकास नहीं होता। आज सामाजिक और आर्थिक परिवेश में क्रांति की बात चलती है। समाज का विकास तभी होता है जब कुछ नये-नये विस्फोट होते रहते हैं। चाहे चिन्तन का विस्फोट हो और चाहे कर्म का विस्फोट हो। विस्फोट का अगला चरण है—विकास । चाहे हम दोनों को एक मान लें या एक को कार्य और एक को कारण मान लें। विस्फोट कारण है और विकास कार्य । विकास के लिए विस्फोट अत्यन्त आवश्यक है।
प्रश्न- क्या मंत्र की आराधना साहस को बढ़ाने में सहायक होती है ?
उत्तर—हां, मंत्र साहस बढ़ाने का माध्यम है। मैं इसे स्पष्ट करूं। हम साहस की कितनी ही गुणगाथा गाएं, बातें करें, जब ऊर्जा कमजोर है तो साहस आएगा कैसे ? जब तक तैजस शरीर, विद्युत् शरीर शक्तिशाली नहीं होता तब तक साहस की बात व्यर्थ है। जब तक बिजली का करंट तारों में पूर्ण रूप से प्रवाहित नहीं होता तब तक बल्ब नहीं जल सकता। यदि वह कुछ जलेगा भी तो उसका प्रकाश बहुत मंद होगा। साहस के लिए जितनी ऊर्जा चाहिए, वह यदि प्राप्त होती है तो साहस जाग जाएगा, अन्यथा हम साहस के हजारों गीत गाएं; बार-बार कहते रहें कि साहस रखो,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org