________________
महामंत्र : निष्पत्तियां-कसौटियां : १०७
लोगों को बताया। जितने अवतार, आचार्य, तपस्वी और साधक हुए हैं, उनकी वाणी को लोग इसलिए शिरोधार्य करते हैं कि उन्होंने सत्य का पहले साक्षात्कार किया, अनुभव किया और फिर लोगों को बताया। किन्तु आज लोग उधार ली हुई बातों के आधार पर अपनी यात्रा को चला रहे हैं। जीवन-यात्रा को ही नहीं, वे धर्म की यात्रा को भी उधार के बल पर ही चला रहे हैं। यह एक आश्चर्यकारी बात है। ___ साधना करने वाले लोग इस भ्रांति से निकलकर सत्य के साक्षात्कार की
ओर चलने का संकल्प लेकर चलते हैं। वे मूल पूंजी को खोजने के लिए प्रयत्न करते हैं। केवल उधार से काम चलाने में उन्हें संतोष नहीं होता। वे मूल को पाने लिए प्रयत्न करते हैं। दरवाजा खुलता है और गति प्रारंभ हो जाती है। किन्तु पहुंचना बहुत दूर है। एक चरण आगे बढ़ने-मात्र से लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो जाती। जब चरण निरन्तर चलते हैं तब लक्ष्य निकट आ जाता है।
मैंने पहले कहा था कि 'णमो अरहंताणं' के अक्षर-अक्षर का ध्यान करें। धीरे-धीरे चमकते हुए श्वेत वर्ण के अक्षर साक्षात् हो जाएंगे। इसके लिए निरन्तर अभ्यास करना होगा। अभ्यास-काल तीन महीने का भी हो सकता हैं और छह महीने का भी हो सकता है और भी अधिक हो सकता है। धीरे-धीरे उसकी निष्पत्ति सामने आने लगेगी। उतावली न करें। उतावलापन साधना का विघ्न है। धैर्य अपेक्षित होता है। आज के युग की सबसे बड़ी बीमारी है---उतावलापन ।
आज के आदमी में धैर्य नहीं है। वह बीमार होता है प्रातःकाल और स्वस्थ हो जाना चाहता है शाम तक। प्रत्येक क्षेत्र में यह उतावलापन है। युग ने विकास किया है। युग की रफ्तार बढ़ी है। ऐसी स्थिति में आदमी इन्तजार करता रहे, यह संभव नहीं है। पहले के जमाने में आदमी घर से निकलता और दो-तीन महीनों के बाद कलकत्ता पहुंच जाता। आज का आदमी कलकत्ता जाने के लिए दो-तीन महीने तो क्या, दो-तीन दिन की भी प्रतीक्षा नहीं कर सकता। वह दो-तीन घंटों में ही वहां पहुंच जाना चाहता है और आज पहुंच भी जाता है। बात बहुत स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि प्रेक्षा-ध्यान की साधना में, मंत्र की आराधना में हम वर्तमान युग के इस प्रभाव को, उतावलेपन को, अधैर्य को, काम में न लें। यह शाश्वत सत्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org