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६४ : एसो पंच णमोक्कारो
जिस व्यक्ति ने जिह्वाग्र के संवेदन को जागृत कर लिया, उस व्यक्ति का यह भ्रम टूट जाएगा कि पदार्थ से सुख मिलता है। वह अनुभव करेगा कि पदार्थ में ही नहीं हमारे भीतर से भी सुख है। तब खोज का रास्ता आगे बढ़ जाएगा कि जीभ को भी छोड़ो, भीतर चैतन्य है, उसके स्पर्श से न जाने कितना सुख मिलता है। सारी दिशा बदल जाएगी, दृष्टिकोण बदल जाएगा
और चलने का रास्ता बदल जाएगा। जब दृष्टिकोण बदल जाता है तब दिशा बदल जाती है। व्यक्ति की सारी दिशाएं बाहर की ओर हैं। वह बाहर की ओर दौड़ रहा है। जब हम भीतर की दिशा को उद्घाटित कर लें और एक निश्चित सीमा में उसका प्रयोग करें तो पता चलेगा कि जहां खोज रहे थे, वहां बहुत थोड़ा था और जहां नहीं खोजा था वहां बहुत ज्यादा है। किन्तु न जाने मनुष्य का कैसा स्वभाव है कि वह थोड़े के लिए बहुत गंवा देता है। वह छोटी बात के लिए बड़ी बात को भुला देता है। क्योंकि छोटी तत्काल सामने आ जाती है और बड़ी के लिए बड़ा प्रयत्न करना होता है। बहुत सारे लोग तात्कालिकता में विश्वास करते हैं, वे दीर्घकालिक नीति से नहीं सोचते । वे नहीं जानते कि तात्कालिक नीति कितनी खतरनाक होती है। किसी को धोखा देकर व्यक्ति एक बार लाभ उठा सकता है किन्तु सदा के लिए वह घाटे में रह जाता है। व्यापार के क्षेत्र में जिन लोगों ने बहुत बड़ी प्रगति की, वे दीर्घकालिक नीति के आधार पर चले । उन्होंने सदा यह सोचा, हमें लाभ हो या न हो, ग्राहक का विश्वास नहीं खोना है। उसे सदा बढ़ाते ही रहना है। ग्राहक का विश्वास बना रहेगा तो आज नहीं कल लाभ प्राप्त होता ही रहेगा। विश्वास को समाप्त कर एक बार लाभ उठाया जा सकता है, किन्तु सदा के लिए होने वाले लाभ से वंचित रहना पड़ता है। जो लोग दीर्घकालीन लाभ की नीति का आश्रय लेकर चलते हैं, वे सदा लाभ में रहते हैं। वे सदा विकास करते रहते हैं। ____ हम भी सिनेमा देखकर तनाव मिटाने की बात न सोचें। उससे तात्कालिक मनोरंजन हो सकता है, किन्तु तनाव मिट नहीं सकता। नया तनाव और उत्पन्न हो जाता है। अध्यात्म के प्रयोगों में समय लंबा लग सकता है किन्तु जो लाभ होता है, वह स्थायी होता है। यह लम्बी दिशा है। यह लंबा यात्रा-पथ है। यह यात्रा जल्दी समाप्त नहीं होती। किन्तु लाभ अवश्य होता है। यदि साधना करने वालों में विश्वास की एक किरण जाग
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