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संकलिका | 6
• वत्थु पडुच्च जं पुण, अज्झवसाण त होदि जीवाणं। __ण य वत्थुदो दु बंधो, अज्झवसाणेण बंधोत्थि।। • सव्वे करेदि जीवो, अज्झवसाणेण तिरिय गणेरइए। देवमणुए य सव्वे, पुण्णं पावं च णेयविहं।।
(समयसार- २६५, २६८) • सरीरमाहु नावोति, जीवो वुच्चई नाविओ।
संसारो अण्णओ वुत्तो जंतरति महेसिणो।। • दो दृष्टिकोणनिश्चय नय
व्यवहार नय • निश्चय नय - वृत्तग्राही दृष्टि
व्यवहार नय-पर्यायग्राही दृष्टि • निश्चय नय : अभेदग्राही दृष्टि
व्यवहार नय : भेदग्राही दृष्टि • सत्य के दो प्रकार
सूक्ष्म सत्य
स्थूल सत्य • स्थूल सत्य : व्यक्त सत्य
सूक्ष्म सत्य : अव्यक्त सत्य • व्यावहारिक सचाई : नैश्चयिंक सचाई • बंध का कारण है अध्यवसाय • अध्यवसाय है चेतना का परिणाम • दुःख मुक्ति का मार्ग
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