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संकलिका | 5
• उवओगे उवओगो कोहादिस णत्थि को वि उवओगो।
कोहो कोहे चेव हि उवओगे णत्थि खलु कोहो।। • अट्ठवियप्पे कम्मे गोकम्मे चावि णत्थि उवओगो।
उवओगम्हि य कम्म णोकम्मं चावि णो अत्थि।। • सुद्धं तु वियाणंतो सुद्धं चेवप्पयं लहदि जीवो। जाणंतो दु असुद्धं, असुद्धमेवप्पयं लहदि।।
(समयसार- १८१, १८२, १८६) • समस्याएं क्यों हैं? • लोभ का साक्षात्कार : मौत का साक्षात्कार • अशुद्ध चेतना के परिणाम • चिन्तन के दो कोण • शुद्ध चेतना का निदर्शन • शुद्ध चेतना : अन्वेषण की उपयोगिता • वर्तमान पीढ़ी : असंयम का परिणाम • समाधान-सूत्र
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