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________________ 26 समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा प्रबल है लोभ दुनिया बड़ी विचित्र है। जिनके पास धन का अंबार है, उनकी अग्नि मंद है। जिनकी अग्नि तेज है, उनको खाने को नहीं मिल रहा है। इस दनिया में ऐसे विरोधाभास चलते हैं। आजकल हार्टफेल से मरने वालों की संख्या बढ़ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण यही लगता है-लोभ की प्रबलता। व्यक्ति का लोभ प्रबल है। वह सारे धन को पचा लेना चाहता है किन्तु वह पचाया नहीं जा रहा है। लोभ के साथ भय भी बढ़ा है। लोभ और भय बढ़ेगे तो हार्ट अटैक की संभावनाएं प्रबल क्यों नहीं होंगी? इससे अकाल मृत्य को सहज निमत्रण मिल जाता है। यदि मरने वाले व्यक्तियों का लेखा-जोखा किया जाए तो सौ में से एक आदमी भी ऐसा शायद ही मिले, जिसने पूरा जीवन जिया हो। प्रत्येक व्यक्ति अकाल मृत्यु का ग्रास बन रहा है। यह है अज्ञान की समस्या। अगर आदमी ज्ञानी नहीं बनता है तो वह पूरा जीवन नहीं जी पाता। त्रिकोण ___ आचार्य अमृतचन्द्र ने समयसार कलश में बहुत सुन्दर बात कही है-एकमेवहि तत् स्वाद्यं विपदामापदं पदं। अज्ञान विपदाओं का स्थान है। सारी आपत्तियां और विपत्तियां अज्ञान के कारण आती हैं। ज्ञान विपदाओं से मुक्त है, उसमें कोई आपत्ति नहीं आती। अज्ञान.से पैदा होने वाली पहली आपत्ति है-अध्यवसाय की तीव्रता- अकाल मृत्यु। दूसरी आपत्ति है-लोभ। तीसरी आपत्ति है स्वार्थ। चौथी आपत्ति है करता। अज्ञानी आदमी स्वार्थी बन जाता है, वह केवल अपनी बात सोचता है। स्वार्थ, लोभ और क्रूरता-यह एक त्रिकोण है। जो लोभी है, वह स्वार्थी होगा। जो स्वार्थी है, वह लोभी होगा। लोभ और स्वार्थ-दोनों जुड़े हुए हैं। जो स्वार्थी और लोभी होता है, वह दूसरे के प्रति क्रूर बन जाता है। वह दूसरे की चिन्ता नहीं करता। उसके आचरण और व्यवहार से दूसरे की क्या स्थिति बनती है, इस बात से वह निरपेक्ष हो जाता है। उसमें ईमानदारी का अभाव हो जाता है। अनैतिकता और अप्रामाणिकता की आज जो समस्या है, उसका कारण खोजा जाए तो एक कारण प्रस्तुत होगा-अज्ञान अज्ञान है प्रबल राग हम अज्ञान शब्द को भी समझें। अज्ञान का मतलब अनपढ़ आदमी से नहीं है। जो पढ़ता है, वह ज्ञामी होता है, जो नहीं पढ़ता है, वह अज्ञानी For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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