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________________ हिंसा का मूल क्या है? 149 उसका कारण घृणा नहीं है। घृणा के आधार पर हिंसा नहीं चल सकती। द्वेष के आधार पर कोई लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती। जब तक सैनिकों के मन में राष्ट्र प्रेम पैदा नहीं करेंगे, लड़ाई नहीं लड़ी जाएगी। यह प्रशिक्षण दिया जाता है- राष्ट्र के लिए बलिदान देना सबसे बड़ा धर्म है। जिते च लभ्यते लक्ष्मीः मृते चापि सुरांगना। क्षणभंगुरको देह, का चिंता मरणे रणे।। अनैतिकता का कारण __ जब इस प्रकार का अनराग पैदा किया जाता है तब कहीं आदमी प्राण देता है। किसी भी काम को करने के लिए सबसे बड़ी प्रेरणा है उसके प्रति राग पैदा करना। धर्म को चलाने के लिए भी देव और गुरु के प्रति राग पैदा करना पड़ता है। इस सारे संदर्भ में हम विचार करें-हिंसा का मूल कारण क्या है? मिलावट और अनैतिकता का मल कारण क्या है? आचार्यश्री ने अणव्रत आंदोलन शुरू किया, उसे प्रारंभ हुए ४० वर्ष हो गए। बहुत प्रयत्न किया गया कि हमारे देश से भ्रष्टाचार, अनैतिकता, अप्रामाणिकता, मिलावट आदि मिटे पर ऐसा लगता है कि वे मिट नहीं रहे हैं। कारण स्पष्ट है-जब तक यह राग की बात समझ में नहीं आएगी तब तक इन सबका मिटना संभव नहीं बन पाएगा। राग का हेतु राग को बढ़ाने का सबसे बड़ा हेतु है अपना शरीर। यहीं से राग शुरू होता है। दूसरा हेत है परिवार। अगर अपने या अपने परिवार के प्रति राग न हो तो व्यक्ति दूसरों को धोखा नहीं देगा। जब यह बात समझ में आती है तब एक प्रश्न उभरता है-राग को पकड़े कैसे? कौन-सी ऐसी साधना करें, जिससे राग कम हो? कायोत्सर्ग का जो प्रयोग है, वह केवल शिथिलीकरण का ही प्रयोग नहीं है। वह राग की जड़ पर प्रहार करने का प्रयोग है। जब तक भेद विज्ञान का अनुभव नहीं होगा, हमारा राग कम नहीं होगा। 'आत्मा अलग है, शरीर अलग है, यह बात समझ में आएगी तभी राग की जड़ पर प्रहार हो पाएगा। सारा राग शरीर और आत्मा को एक मान लेने से होता है। भेद विज्ञान का प्रयोग आचार्य कुन्दकुन्द ने लिखा-पर द्रव्य को जो अपना स्वरूप मानता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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