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वृत्ति परिष्कार का दृष्टिकोण परिवर्तन का सूत्र
परिवर्तन का पहला सूत्र है दृष्टिकोण को बदलना। जब तक दृष्टिकोण नहीं बदलता तब तक कुछ भी नहीं बदलता। जब तक दृष्टिकोण आध्यात्मिक नहीं होता तब तक एक प्रकार का चिन्तन, एक प्रकार का व्यवहार और एक प्रकार की क्रिया चलती है। जब दृष्टिकोण आध्यात्मिक होता है, चिन्तन, क्रिया और व्यवहार दूसरे प्रकार का हो जाता है। एक है आध्यात्मिक दृष्टिकोण और एक है मूर्छा का दृष्टिकोण, भौतिक या पदार्थवादी दृष्टिकोण। भौतिक दृष्टिकोण से प्रभावित चिन्तन और निष्कर्ष बिलकुल भिन्न होते हैं।
हम राग और द्वेष-दोनों वृत्तियों की चर्चा करें, फ्रायड की भाषा में जीवन मूलक वृत्ति और मृत्यु मूलक वृत्ति की चर्चा करें। जब तक जीवन और मरण के प्रति हमारा दृष्टिकोण आध्यात्मिक नहीं होता तब तक कुछ भी नहीं बदल सकता। हम सबसे पहले जीवन और मरण के प्रति अपना दृष्टिकोण आध्यात्मिक बनाएं। जीवन राग पैदा करता है और मृत्यु द्वेष पैदा करती है। जीवन के आधार पर राग के पौधे को सिंचन मिलता है। मृत्य के आधार पर द्वेष के पौधे को सिंचन मिलता है। जब तक यह सिंचन मिलता रहेगा, वृत्तियां पनपती रहेंगी, हम मूर्छा का जीवन जीते रहेंगे। कुन्दकुन्द की भाषा
दृष्टिकोण आध्यात्मिक बनाए बिना आध्यात्मिक जीवन नहीं जीया जा सकता। सामान्य दष्टिकोण है-प्रत्येक आदमी जीवन जीना चाहता है, दूसरों को भी जिलाना चाहता है लेकिन यह आध्यात्मिक दृष्टिकोण नहीं है। जब दृष्टिकोण आध्यात्मिक बनता है, एक नई सचाई सामने आती है-न मैं दूसरों को जिलाता हूं और न दूसरे मुझे जिलाते हैं। आचार्य कन्दकन्द के शब्दों में जो ऐसा नहीं सोचता, वह मूढ़ और अज्ञानी है। कन्दकन्द ने तर्क की भाषा में समझाया-आदमी अपने
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