SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपने आपको जानें जब प्रेक्षाध्यान का प्रयोग प्रारंभ होता है, तब यह स्वर गंज उठता है 'संपिक्खए अप्पगमप्पएणं' - अपने द्वारा अपने को देखो। इस दृष्टि का निर्माण किए बिना प्रेक्षाध्यान की कोई भी बात समझ में नहीं आती। प्रेक्षाध्यान का एक सम्यग् दर्शन है और वह है अपने आपको जानना। पदार्थ को जानने वाले बहत हैं। प्रत्येक व्यक्ति पदार्थ को जानता है किन्त अपने आपको जानने वाले लोग बहुत कम हैं। अपने आपको न जानने का मतलब है अनेक समस्याओं को निमंत्रण। भारतीय अध्यात्म की परम्परा में ऐसे बहुत आचार्य हुए हैं, जिन्होंने अध्यात्म का स्वर उदात्त किया। एक महत्त्वपूर्ण शब्द है-अध्यात्म, आत्मा के भीतर तक पहंच जाना, बाहर से भीतर आ जाना। बाहर रहना भौतिकता है और भीतर आना अध्यात्म है। बहुत अन्तर है बाहर और अन्दर में। महत्त्वपूर्ण प्रश्न एक भिखारी घूम रहा था। वह घूमते-घूमते शहर के बाहर पहुंचा। शहर के बाहर एक मठ था। उसने देखा – मठ के पास एक पीले रंग की चीज चमक रही है। पीले रंग का आकर्षण और चमक का आकर्षण-दोनों आकर्षण जागे। उसे लगा-यह सोना होना चाहिए। जहां सोने की बात आती है, वहां सब कुछ आ जाता है। इससे बड़ा दुनियां में कोई आकर्षण नहीं है। उसने उधर पैर बढ़ाए तो सोने का कटोरा मिला। उसने सोचा-ऐसा हो नहीं सकता कि कोई सोने का कटोरा ऐसे ही फैंक दे। सामान्य पदार्थ को फैंका जा सकता है किन्तु सोने को भी फेंका जा सकता है-यह बात उसकी समझ से परे थी। वह असमंजस में पड़ गया। उसने उस कटोरे को उठाया और देखा -वह सोने का ही कटोरा था। भिखारी विस्मय में पड़ गया। उसके मन में एक प्रश्न उभर आया - बात क्या है? सोने का था तो फैंका कैसे? और फैंका है तो सोने का कैसे? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy