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________________ शांतिपूर्ण सहवास कैसे ? 103 अपनानी होगी। जैसे-जैसे मथाना ( झेरणा) चलेगा, मक्खन ऊपर आता चला जाएगा, छाछ नीचे बैठती चली जाएगी। यही काम दीर्घश्वास की प्रक्रिया का है । जैसे-जैसे दीर्घश्वास का प्रयोग चलेगा, आवेश नीचे बैठते चले जाएंगे, चेतना ऊपर आती चली जाएगी। दीर्घश्वास का प्रयोग छोटा सा प्रयोग लग सकता है। किंतु यह चेतना के रूपान्तरण का एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग है, चेतना के परिष्कार का एक शक्तिशाली प्रयोग है। जो व्यक्ति दीर्घश्वास को अपना आलंबन बना लेता है वह शायद अनेक समस्याओं का पार पा जाता है। महत्वपूर्ण है मन की शक्ति कठिनाई यह है कि लोग श्वास लेना ही नहीं जानते । श्वास लेना सिखाया ही नहीं जाता। इस स्थिति में शांतिपूर्ण सहवास कैसे संभव है? इसके लिए जरूरी है प्रारम्भ से ही बालकों को प्रशिक्षित करने का अभियान चले। हम इस सचाई को समझें । जैसे-जैसे यह सचाई जीवन में आएगी वैसे-वैसे जीवन का मार्ग सरल और निर्मल बनता चला जाएगा, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की बात अपने आप फलित होगी। हमारे जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण बात है मन की शांति । शांति नहीं होती है तो पूरा जीवन रूखा-सूखा और विफल सा लगता है । हम जीवन को सिर्फ पैसे के साथ ही न जोड़ें। यदि शांति का ध्येय सामने रहा तो शांतिपूर्ण सहवास होगा, पारिवारिक जीवन सुखद होगा, आनन्दमय होगा और परिवार में कैसे रहना चाहिए, समाज में कैसे जीना चाहिए, इसकी कला अपने आप हाथ में आ जाएगी। समयसार में अध्यात्म चेतना के जो महत्त्वपूर्ण सूत्र उपलब्ध हैं, वे आत्मिक शांति के साथ-साथ पारिवारिक शांति के लिए भी महत्त्वपूर्ण हैं। उनका उपयोग करने वाला शांतिपूर्ण सहवास का मंत्र उपलब्ध कर लेता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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