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शातिपूर्ण सहवास कैसे? आना उसे पसंद नहीं आता। वह स्वयं ही सब कुछ पाना चाहता है। यह लोभ की वृत्ति अपना सेहरा सबसे ऊंचा रखना चाहती है। सामदायिक चेतना के जागरण में यह लोभ का आवेश एक बहत बड़ा विघ्न है। परिवार के विघटन में भी यह बहुत बड़ा कारण बनता है। पांच-दस आदमी एक साथ कार्य कर रहे हैं। काम ठीक चल रहा है, अच्छी कमाई है पर एक आदमी के मन में एक सनक आती है, लोभ जागता है और वह छिपे-छिपे अपना घर भरना शुरू कर देता है, बिखराव शुरू हो जाता है, लड़ाई झगड़े शरू हो जाते हैं। कोई लाभ में नहीं रहता। यह लोभ लाभ को भी गंवा देता है। जहां लोभ बढ़ता है, वहां लाभ की हानि शुरू हो जाती है। स्वामी विवेकानन्द ने ठीक कहा था- अमेरिकन लोग कंपनी बनाकर काम करना जानते हैं। हिन्दस्तानी लोग कंपनी बनाकर काम करना नहीं जानते। यही कारण है-हिन्दस्तान के ऐसे बड़े बड़े परिवार, जो बड़े औद्योगिक परिवार कहलाते थे, उनमें लड़ाइयां होने लगी, विघटन और बिखराव शुरू हो गया। इसका कारण है- लोभ का आवेश, असीमित लोभ। समाधान है अध्यात्म चेतना - जब तक हम तीन प्रकार के आवेश- क्रोध का आवेश, अहंकार का आवेश, लोभ का आवेश को कम करना नहीं जानते तब तक सामुदायिक जीवन की बात सोची नहीं जा सकती। क्रोध के सामने क्रोध करेंगे तो क्या क्रोध कम हो जाएगा? जब दूध में उफान आता है, चूल्हे में एक लकड़ी और डाल दें तो क्या उफान मिट जाएगा? इसी प्रकार अहंकार के सामने अगर अहंकार आएगा तो वह कभी शांत नहीं होगा, वह अधिक फफकारने लग जाएगा। जैसे एक व्यक्ति लोभ करता है वैसे ही दूसरा भी लोभ करने लग जाए तो क्या लोभ शांत हो पाएगा? कभी संभव नहीं है। शांत होने का एकमात्र उपाय है आध्यात्मिक चेतना का विकास। जैसे-जैसे अध्यात्म चेतना जागेगी, आवेश शांत होते चले जाएंगे। एक ओर है आवेश की चेतना और दसरी ओर है शांति की चेतना, उपशमन की चेतना। क्रोध का उपशमन, अहंकार का उपशमन और लोभ का उपशमन। उफनते दूध में पानी का छींटा दिया, उपशमन हो गया। यह पानी का छींटा है अध्यात्म की चेतना, धर्म की चेतना। समस्या का कारण
कठिनाई यह है- आज न बच्चों में धर्म और अध्यात्म को चेतना जगाने का कोई प्रयत्न किया जाता है और न ही बड़े लोगों में उसके जागरण का प्रयत्न होता है। हम जानते भी नहीं हैं कि इन आवेशों का
शमन कैसे किया जाए? हम शमन की पद्धति नहीं जानते। धर्म भी चलता Jain Education International For Private & Personal Use Only
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