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________________ परिवार के साथ कैसे रहें? प्रश्न है शान्त सहवास का मनष्य सामाजिक प्राणी है। वह समाज के साथ जीता है। समाज की सबसे छोटी इकाई है परिवार। परिवार सामंजस्य का एक प्रयोग है। यदि व्यक्ति दो-चार व्यक्तियों के साथ शांतिपूर्ण जीवन जी सकता है तो वह बड़े समूह के साथ भी शांतिपूर्ण जीवन बिता सकता है। यदि परिवार में कलह, लड़ाई-झगड़ा, रोना-सलाना- यह सब चलता है तो उसका जीवन नारकीय जैसा बन जाता है। शांतिपूर्ण जीवन के लिए यह जरूरी है कि व्यक्ति परिवार के साथ शांतिपूर्ण ढंग से रहे, इसीलिए शांत सहवास का सूत्र दिया गया। शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का सूत्र दिया गया- एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के साथ शांतिपूर्ण ढंग से रहे और सह-अस्तित्व को स्वीकार करे। जब परिवार में ही शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व नहीं होता है तब समाज, राष्ट्र या अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में वह कैसे संभव है? प्रशिक्षण का पहला पाठ है- व्यक्ति परिवार के साथ शांतिपूर्ण ढंग से रहे। प्रत्येक व्यक्ति ऐसा चाहता है पर चाहते हए भी वह ऐसा नहीं बन पाता। प्रश्न होता है- ऐसा क्यों नहीं होता? जीवन शांतिपूर्ण क्यों नहीं बनता? इसका कारण क्या है? अशान्ति का कारण हम कारणों पर विचार करें। कारण की समीक्षा किए बिना इस समस्या को मिटाया नहीं जा सकता। अशांति का कारण है- चेतना का अपरिष्कृत होना। आदमी शरीर, वाणी और मन के साथ जीता है। इन सबसे आगे है हमारी चेतना। जब तक चेतना का परिष्कार नहीं होता. शरीर भी गंदला-गंदला सा रहता है, वाणी भी अपवित्र और गंदी सी रहती है, मन भी निर्मल नहीं बनता। ये सब चेतना के द्वारा संचालित हैं। चेतना परिष्कृत होती है तो ये सारे निर्मल बन जाते हैं। चेतना अच्छी नहीं होती है तो ये भी अच्छे नहीं बनते। चेतना का परिष्कार नहीं है, विवेक जागत नहीं है, बद्धि इतनी विकसित नहीं है कि हम सचाई को ठीक से समझ सकें इसीलिए परिवार में संबंधों का जोड़-तोड़ चलता रहता है। चेतना के दो रूप चेतना के दो रूप हैं- व्यक्ति चेतना और सामुदायिक चेतना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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