________________
९६ । मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य
जिस व्यक्ति में यह अमृतत्व की भावना, शाश्वत की भावना जाग जाती है, जिसकी विवेक चेतना प्रबुद्ध हो जाती है उसका घर के प्रति आकर्षण हो नहीं सकता। जैन, वैदिक और बौद्ध–तीनों धाराओं में ऐसी हजारों घटनाएं घटी हैं। जिनमें विवेक चेतना जाग जाती है, उनका घर में रहना भारी हो जाता है। दहेज : वर्तमान मानस ___ जम्बूकुमार की घटना विश्रुत है । आज लोग दहेज के नाम पर बहुत लुभावने सपने देखते है । वे समझते हैं-दहेज बहुत आ गया तो निहाल हो गए । दूसरों की रोटियों पर आकर्षक सपना देखना अत्यन्त विचित्र लगता है। किसी व्यक्ति को अपने लड़के की शादी में पांच-दस लाख का दहेज मिल जाता है तो वह मानता है-सब कुछ मिल गया। यदि जंबूकुमार को जितना दहेज मिला था उसे सुनें तो मुंह में पानी आ जाए। जम्बूकुमार को निन्यानवें करोड़ सोनैये दहेज में मिले थे।
आज किसी आदमी को इतना मिल जाए तो वह सीधा अरबपति बन जाए । उस समय निन्यानवें करोड़ सोनैयों कर मिलना महान् घटना थी। सामान्य आदमी इन रुपयों के भार से दब जाए किन्तु जम्बूकुमार के मानस में कोई प्रकंपन नहीं हुआ। उसकी आकर्षण की दिशा बदल चुकी थी। इतना बड़ा दहेज और आठ नवयौवनां कन्याएं, किन्तु जम्बूकुमार का उनसे कोई लगाव नहीं। सुहागरात के दिन जम्बूकुमार कहता है—मैं दीक्षा लूंगा। आठों नव-यौवनाएं उसे रोकने का प्रयत्न कर रही हैं । जम्बूकुमार में कोई विचलन पैदा नहीं हुई। वह सूर्योदय होते ही विशाल परिकर के साथ मुनि बन गया। विवेक चेतना : अविवेक चेतना
क्या ऐसा होना सम्भव है? क्या यह अनहोनी बात नहीं है ? आठ नवयौवना कन्याएं और अपार दहेज सामने प्रस्तुत है, उसके प्रति किंचित् भी आकर्षण न हो? जिसकी विवेक चेतना जाग जाती है, उसके सामने निन्यानवें अरब रुपए आ जाएं तो वे उसके लिए सिवाय मिट्टी के कुछ नहीं है । जब विवेक चेतना जागती है, मनुष्य का मन भौतिकता के पाश में आबद्ध नहीं होता। एक ओर है प्रियता का संसार तथा दूसरी ओर है विवेक का संसार । जब तक विवेक जागृत नहीं है तब तक गृहस्थ जीवन का आकर्षण कम नहीं होता। अविवेक की चेतना में व्यक्ति का घर के प्रति आकर्षण बना रहता है। उसे ऐसा लगता है जो कुछ सुख है, वह संसार में ही है। जैसे ही विवेक जागता है, व्यक्ति को लगता हैं-संसार में कुछ भी नहीं है, गृहस्थ के भोगों का कोई मूल्य नहीं है । जब तक आदमी की एक प्रकार की चेतना होती है, उसे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org