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___गृहस्थ जीवन का आकर्षण क्यों ? । ९५ छोड़ो, घर को मत छोड़ो। पिता वृद्ध था और पुत्र बहुत छोटी आयु में थे। उलटी बात हो रही थी।
लोग कहते हैं—जब व्यक्ति बूढ़ा होता है, उसकी आकांक्षा कम हो जाती है। सचाई यह है-जैसे-जैसे व्यक्ति बूढ़ा होता है, उसकी आकांक्षा बढ़ती चली जाती है, मोह सघन बनता चला जाता है । वह सोचता है-मौत निकट आने वाली है, जितना भोग सकू, भोग लूं, फिर यह सब साथ में चलने वाला नहीं है। सारा का सारा यहीं धरा रह जाएगा। उसकी लालसा प्रबल हो जाती है । संन्यास के तीन हेतु
भृगु ने अपने पुत्रों से पूछा-घर क्यों छोड़ रहे हो? पिता के इस प्रश्न के उत्तर में पुत्र बोले—पिताजी ! आप कैसी बात कह रहे हैं। पहली बात है—'असासयं ।' यह गृहवास अशाश्वत है । एक दिन इसे छोड़कर चले जाना है। इसे आपको भी छोड़ना है, हमें भी छोड़ना है। दूसरी बात है—बहुअन्तरायम्-सांसारिक भोग में बहुत बाधाएं हैं । आज तक कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं हुआ है, जिसने सांसारिक भोगों को निर्विघ्नता से भोगा हो । तीसरी बात है —न य दीहमाउं—आयुष्य बहुत छोटा है, संक्षिप्त है । इस छोटे से जीवन को भोगों में बरबाद करना उचित नहीं है । इसलिए घर में रहना हमें पसंद नहीं है, स्वीकार नहीं है। गृहत्याग के ये तीन कारण बड़े महत्त्वपूर्ण हैं । अशाश्वतता, बहुविघ्नता और आयुष्य की अल्पता
असासयं दृढ इमं विहारं, बहु अन्तरायं न य दीहमाउं ।
तम्हा गिहंसि न रइं लहामो, आमंतयामो चरिस्सामु मोणं ।। अमृतत्व का आश्वासन
वासुदेव कृष्ण ने थावच्चा पुत्र से कहा—तुम अभी दीक्षित मत बनो । गृहवास को भोगकर दीक्षित हो जाना। ___थावच्चा पुत्र ने कहा -- महाराज ! यदि आप दो बातों का आश्वासन दें तो मैं दीक्षा नहीं लूंगा। पहली बात है-मैं कभी मरूँगा नहीं। दूसरी बात है—मैं कभी बीमार नहीं बनूंगा। अमृतत्व और आरोग्य-इन दो बातों का आश्वासन दें।
कभी-कभी छोटी अवस्था वाला भी प्रौढ़ बात कह जाता है, गंभीर चिंतन दे देता है। इस गंभीर प्रश्न को सुनकर वासुदेव स्तब्ध रह गए।
वासुदेव कृष्ण ने कहा-मैं तुम्हें राज्य दे सकता हूं, राजा बना सकता हूं, धनवान् बना सकता हूं किन्तु अमर बनाना मेरे वश की बात नहीं है ।
थावच्चा पुत्र ने कहा- मेरा भी घर में रहना सम्भव नहीं है।
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