SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गृहस्थ जीवन का आकर्षण क्यों ? | ९१ रहता है। कहा गया— एक ग्यारहवीं प्रतिमा को धारण करने वाला श्रावक, जो श्रमणभूत होता है, साधु-तुल्य होता है, अनेक चिन्ताओं से आक्रांत रहता है । साधुतुल्य होने पर भी वह गृहस्थ है, चिन्ता से मुक्त नहीं है। उसे पूरे परिवार की स्मृति हो रही है, उसकी दुकानें चल रही हैं, घर-बार चल रहा है। इन सबसे उसका सम्बन्ध जुड़ा हुआ है । एक दिन उसे वापिस वहीं जाना है। कठिन है गृहस्थ जीवन प्रश्न हो सकता है-एक गृहस्थ, जो श्रमणभूत बन गया, उसका परिवार से रिश्ता क्यों नहीं टूटा? शास्त्रों में बतलाया गया-उसके प्रेम का, राग का जो धागा है, वह टूटा नहीं है । वह परिवार से रागात्मक रूप से जुड़ा हुआ है । वह श्रमणभूत बन गया फिर भी वह घर-बार से रागात्मक तंतु से बंधा हुआ है । जब मारणान्तिक समुद्घात होता है, आत्मा के प्रदेश शरीर से बाहर निकल जाते हैं, बहुत दूर तक चले जाते हैं । मरने के बाद आत्मा को जहां पैदा होना होता है, वहां तक आत्मा के प्रदेश पहुंच जाते हैं किन्तु चेतना का एक धागा जुड़ा रहता है, जिसे रजतसूत्र या सिल्वरकॉड कहा जाता है। आत्मा के प्रदेश उस धागे से निरन्तर जुड़े रहते हैं, संपर्क बना रहता है। इसी प्रकार एक गृहस्थ का भी अपने परिवार से लगाव बना रहता है। वह परिवार की चिन्ता से मुक्त नहीं हो सकता। जैन विश्व भारती परिसर में युवालोक के पास एक जनरल स्टोर है। प्रबंधक ने बताया-हमारे यहां पन्द्रह सौ आइटम हैं । मैंने पूछा- इनका क्या उपयोग है ? उसने बताया- ये भी कम पड़ रहे हैं। हमें और चाहिए। एक मुनि से कहा जाए-नाममाला कण्ठस्थ करो, उसके पन्द्रह सौ श्लोक हैं । उसे इतने श्लोक कठस्थ करना बहुत भारी लगता है। एक गृहस्थ को, जो रोज दुकान पर बैठता है, पन्द्रह सौ आइटम याद रखने पड़ते हैं। कब, कौन, किस चीज के लिए आ जाए, कोई पता नहीं चलता। जहां बड़े-बड़े जनरल स्टोर होते हैं, वहां हजारों-हजारों तरह के आइटम होते होंगे । इन सबको याद रखना बहुत मुश्किल होता है किन्तु एक गृहस्थ को यह दायित्व निभाना पड़ता है। उसके अनेक जिम्मेदारियां और अनेक प्रकार की चिन्ताएं होती हैं। आकर्षण क्यों? प्रश्न होता है-जब गृहस्थाश्रम इतना कठोर है तब व्यक्ति मुनि क्यों नहीं बन जाता? संन्यासी क्यों नहीं बन जाता? क्यों वह घर में बैठा रहता है ? जब नमि राजर्षि बने, तब उनके साथ मिथिला का समाज मुनि क्यों नहीं बना? एक गृहस्थ मुनि क्यों नहीं बनता? एक गृहस्थ का घर के प्रति आकर्षण क्यों है ? इसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy