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आध्यात्मिक सुख / ८५ शक्ति नीचे की ओर जाती थी वह ऊपर की ओर जाने लगती है । इतना सा ही अन्तर पड़ता है । मस्तिष्क की ऊर्जा का नीचे जाना भौतिक जगत् में प्रवेश करना है । कामकेन्द्र की ऊर्जा का ऊपर जाना अध्यात्म जगत् में प्रवेश करना है । ऊर्जा के नीचे जाने से पौगलिक सुख की अनुभूति होती है। ऊर्जा के ऊपर जाने से अध्यात्म सुख की अनुभूति होती है । यह केवल विद्युत् का परिवर्तन है। इसे कहा गयाअन्तर्मैथुन, आत्मरति, आत्मरमण । आत्मरमण की बात व्यर्थ नहीं है। प्रश्न ठीक है । इसके समाधान में कहा गया कि आत्म-रमण का केन्द्र हमारे पास विद्यमान है, इसमें हम रमण कर सकते हैं । बिन्दु है ग्रे मैटर
शरीर में सात धातुएं हैं। सातवां धातु है- -शुक्र, वीर्य । कहा गया -मरणं बिन्दुपातेन, जीवनं बिन्दुधारणात् - बिन्दु के पात से मरण होता है और बिन्दु के धारण से जीवन प्राप्त होता है। बिन्दु क्या है - इसे ठीक समझना है। मस्तिष्क में, जो प्राण ऊर्जा है, यह जो ग्रे मैटर (Grey matter) है, यह जो धूसर हिस्सा है, यही है बिन्दु, यही है वीर्य । 'सहस्रारोपरि बिन्दु' - सहस्रार के ऊपर बिन्दु की अवस्थिति है । उस बिन्दु के साथ जब शक्ति का मिलन होता है तब आत्म-रति पैदा होती है ।
आरोहणका पथ
बिन्दु के पात से मरण और बिन्दु के रक्षण से जीवन – यह बात बिल्कुल ठीक है । जब प्राण की ऊर्जा नीचे जाती है तब मनुष्य मरता है और जब प्राण की ऊर्जा ऊपर जाती है तब मनुष्य जीता है, अमर हो जाता है । वह आत्मा को प्राप्त कर लेता है । यह आत्मा के आरोहण का मार्ग है, अध्यात्म के विकास का मार्ग है । जब तक मनुष्य की चेतना नाभि के नीचे के केन्द्रों के आसपास ही उलझी रहती है तब तक आरोहण नहीं होता । गुणस्थानों के क्रमारोहण की बात भी यही है । जब ऊर्जा का निम्नगामी प्रवाह होता है तब मनुष्य पहले, दूसरे, तीसरे गुणस्थान में भी रहता है | जब चौथा गुणस्थान आता है तो विवेक की प्रज्ञा जागती है और ऊर्जा की नाभि के आसपास आती है। फिर क्रमश: आरोहण होता है । साधक ऊपर उठता है । वह सुषुम्ना के मार्ग से मस्तिष्क के केन्द्र तक पहुंचता है और धीरे - धीरे आगे बढ़ता हुआ केवलज्ञान प्राप्त कर लेता है, आत्मा का साक्षात्कार हो जाता है । यह मार्ग छोटा है। यात्रा भी छोटी है । परन्तु है बहुत ही महत्त्वपूर्ण । इसमें खपना
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