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आध्यात्मिक सुख । ८३ प्रतिपक्ष भावना
अध्यात्म के क्षेत्र में जब स्पंदनों का सूक्ष्मता से अध्ययन किया गया तो अनेक स्थापनाएं हुईं। एक स्थापना हुई–प्रतिपक्ष भावना की । स्पंदन पैदा करने का और सूक्ष्म स्तर तक पहुंचने का एक मार्ग है—भावना। भावना का अर्थ है-वैसा हो जाना, ध्येय के अनुरूप हो जाना। प्रतिपक्ष स्पंदनों से बहुत सारी बातें घटित हो जाती हैं। क्रोध का प्रतिपक्षी है--उपशम । क्रोध है तो उपशम के स्पंदन पैदा करो। मान का प्रतिपक्षी है-मृदुता । मान है तो मृदुता के स्पंदन पैदा करो । माया का प्रतिपक्षी है—ऋजुता । माया है तो ऋजुता के स्पंदन पैदा करो। लोभ का प्रतिपक्षी है—संतोष । लोभ है तो संतोष के स्पंदन पैदा करो। यह उपदेश नहीं, सत्य का प्रतिपादन है (इस 'प्रतिपक्ष' संवेदन के द्वारा ‘पक्ष' के संवेदनों को नष्ट किया जा सकता है।
किसी को मोह हो रहा है, शोक हो रहा है, विषाद हो रहा है, एकत्व की अनुप्रेक्षा करो, एकत्व के स्पंदन पैदा करो, मोह के स्पंदन समाप्त हो जाएंगे।
एक स्त्री थी। उसका नाम था 'अतुंकारीभट्टा' । उसमें क्रोध के इतने स्पंदन होते कि सर्पिणी से भी वह अधिक फुफकारती । उसने उपशम की बात को समझा । उसका क्रोध शांत हो गया। क्रोध का प्रतिपक्ष है उपशम । उपशम के स्पंदन क्रोध के स्पंदनों को नष्ट कर देते हैं।
एक जिज्ञासा हो सकती है कि प्रतिपक्ष की भावना से ‘पक्ष' के स्पंदन नष्ट हो जाते हैं तब हम खाने का कष्ट ही क्यों करें? जब भूख के स्पंदन होने लगे तब हम भोजन के स्पंदनों का अनुभव करें, भूख शांत हो जाएगी। क्या ऐसा हो सकता है ? इसे हमें समझना है। प्रतिपक्ष भावना का प्रयोग जीव-विपाकी स्थितियों में ही किया जा सकता है। कुछ स्पंदन ऐसे होते हैं जिनका प्रभाव केवल पुद्गल पर ही होता है, हमारे शरीर पर ही होता है । कुछ स्पंदन ऐसे होते हैं जिनका प्रभाव चैतन्य पर भी होता है। मूर्छा के या मोह के जितने स्पंदन हैं-ये सारे जीव-विपाकी हैं इनका प्रभाव हमारे चैतन्य पर होता है । शुभ-अशुभ वेदनीय का प्रभाव पुद्गलों पर होता है । भूख को प्रतिसंवेदी स्पंदनों के द्वारा मिटाया जा सकता है । विषय रमण : आत्म रमण
प्रतिपक्षी स्पंदनों को उत्पन्न करने की बात अध्यात्मशास्त्र में विकसित हुई। जो भी स्पंदन हों, उन्हें देखो-जानो। विपाक-विचय करो। देखो-जानो। तत्काल प्रतिपक्षी स्पंदन शुरू करो । विषाद, घृणा, शोक, क्रोध—ये सारे समाप्त हो जाएंगे।
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