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________________ ८२ / मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य 1 आंखों के सामने जहर मिली छाछ के पान का दृश्य उपस्थित हुआ और वे चारों उसी क्षण मर गए । उनको विष ने नहीं मारा, किन्तु विष की स्मृति ने मार डाला । वे सचमुच मर गए । T मंत्र : स्पंदन का सिद्धान्त' I चिंतन से, स्मृति से, कल्पना से स्पन्दन पैदा होते हैं । सुखद स्पंदन भी पैदा होते हैं और दुःखद स्पंदन भी पैदा होते हैं । भक्ति और जप का मार्ग जो विकसित हुआ, उसके पीछे भी स्पन्दनों का ही सिद्धांत काम करता है। कहा जाता हैअमुक प्रकार की ध्वनि करो, अमुर प्रकार के स्पन्दन पैदा करो। उच्चारण सहित जप करो, मन्द जप करो, मौन जप करो, मानसिक जप करो और सूक्ष्म में जाकर प्राण का जप करो । यह स्पन्दनों के उत्पादन का ही सिद्धान्त है। मंत्र का सिद्धान्त भी ध्वनि का सिद्धान्त है, स्पन्दनों का सिद्धान्त है। मंत्र की रचना करने वाले जानते थे कि किस प्रकार की ध्वनि से किस प्रकार के स्पन्दन पैदा होते हैं और उनका क्या प्रभाव होता है। ध्वनियों के विविध स्पंदनों के आधार पर ही समूचा मंत्र - शास्त्र विकसित हुआ। सैकड़ों ग्रंथ मंत्र - शास्त्र पर लिखे गए। ऐसी कोई भी व्याधि, चाहे फिर वह शारीरिक हो या मानसिक, नहीं है, जिसके उपशमन के लिए कोई न कोई मंत्र निर्दिष्ट न किया हो । मंत्र के द्वारा धन की प्राप्ति की जाती है । मंत्र के द्वारा अनिष्ट का निवारण किया जाता है। सुख-दुःख, लाभ - अलाभ - सब में मंत्र का प्रयोग किया जाता है । ध्वनि स्पंदन पैदा करती है और वे नाना प्रकार के स्पंदन नाना प्रकार की अवस्थाएं पैदा करते हैं । अनुभव भी स्पंदन पैदा करते हैं। हम किसी अनुभव में जाते हैं । एक विशिष्ट प्रकार के स्पंदन प्रारंभ हो जाते हैं । ध्यान भी स्पंदन पैदा करता है I जितने आस्रव, उतने ही संवर । जितने बंध के प्रकार, उतने ही मोक्ष के प्रकार । जितनी बीमारियां उतनी ही औषधियां । इसी प्रकार स्पंदन की उत्पत्ति के भी अनेक निमित्त हैं । जितने निमित्त, उतने ही प्रकार के स्पंदन । इसीलिए भक्ति-मार्ग भी चल रहा है; श्रद्धामार्ग भी चल रहा है; ज्ञान और क्रियामार्ग भी चल रहा है। किसी भी मार्ग पर चलें । अमुक-अमुक प्रकार के स्पंदन पैदा करें और अमुकअमुक प्रकार के स्पंदनों को रोक दें, काम बन जाएगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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