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७८ / मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य
प्रकार के स्पंदन प्रारंभ हो जाते हैं और विकल्प शांत हो जाते हैं। विकल्पों को शांत करने का यह सुन्दर प्रयोग है । जब जीभ स्थिर होती है तब वृत्तियां शांत होने लग जाती हैं। कामकेन्द्र और रसनेन्द्रिय का बहुत बड़ा संबंध है। साधना के ग्रंथों में रसनेन्द्रिय को जीतने पर बल दिया गया है। यह निरर्थक नहीं है, सार्थक है। कामवासना पर विजय पाना है तो पहले रसनेन्द्रिय पर विजय प्राप्त करो। रसनेन्द्रिय का संयम करो। रसना-संयम : काम-संयम ___ पांच इन्द्रियों में दो इन्द्रियां कठोर और अजेय मानी जाती हैं। एक है स्पर्शन इन्द्रिय और दूसरी है रसन इन्द्रिय । स्पर्शन इन्द्रिय का सीधा संबंध है कामकेन्द्र से और रसन इन्द्रिय का कुछ टेढ़ा संबंध है कामकेन्द्र से । रसना का संयम और काम का संयम—दोनों साथ चलते हैं । जैसी ही रसना का संयम होता है, वहां के स्पंदन जब कम होते हैं, विजित होते हैं तब कामवासना के स्पंदन भी कम होने लग जाते
हैं।
___जैसे ही जीभ का संयम किया, आध्यात्मिक स्पंदन शुरू हो जाते हैं। ये स्पंदन हमारी पकड़ में भी आते हैं। साधना करने वाले साधक को यह स्पष्ट अनुभव होगा कि ये स्पन्दन इतने सुखद होते हैं कि वे कामकेन्द्र के स्पन्दनों को भी पराभूत कर डालते हैं।
ऊर्जा की ऊर्ध्वयात्रा में रसनेन्द्रिय बहुत बाधक होती है। जब हम उसकी ऊर्जा को वहां से हटा लेते हैं और उसे स्थिर कर देते हैं तब वह बाधा समाप्त हो जाती है। रसलोलुपता नीललेश्या का परिणाम है । यह परिणाम समाप्त हो जाता है । ऐसा होने पर ही धर्मलेश्याएं पूर्ण जागृत हो जाती हैं । ऊर्जा की ऊर्ध्वयात्रा, प्राण की ऊर्ध्वयात्रा, चित्तवृत्तियों की निर्मलता, धर्म्यध्यान और शुक्लध्यान की स्थिति—ये सब घटित होती हैं । सारी स्थिति ही बदल जाती है-रूपान्तरण घटित होने लगता है । यह सब तपस्या का फल है। तपस्या के फलित
तपस्या के द्वारा तीन बातें फलित होती हैं१. ऊर्जा का अधिक संचय। २. ऊर्जा का अल्प व्यय । ३. ऊर्जा की ऊर्ध्वयात्रा।
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