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________________ ऊर्जा की ऊर्ध्वयात्रा | ७७ पर उनका कोई असर नहीं होता। न कामवासना का असर होता है, न ईर्ष्या और घृणा का असर होता है, न राग-द्वेष का असर होता है। सारी वृत्तियां बेकार । ऐसा लगता है कि वृत्तियां हैं किन्तु उन वृत्तियों में फलने की शक्ति समाप्त हो गयी है। फलदान निमित्त-सापेक्ष होता है। बिना निमित्त के कोई फल दे ही नहीं सकता। विपाकोदय तब होता है जब कोई निमित्त मिलता है। बिना निमित्त के विपाकोदय नहीं हो सकता। वह व्यर्थ चला जाता है । कोई परिणाम नहीं आता। ऊर्ध्वयात्रा का परिणाम ऊर्जा की ऊर्ध्वयात्रा का एक परिणाम है-वृत्तियों की फलदान-शक्ति को नष्ट कर देना। तब वे वृत्तियां स्वत: नष्ट हो जाती हैं। जब तक उनको पोषण और सिंचन मिलता रहता है तब तक वे पनपती रहती हैं । जब सिंचन ही बंद हो जाता है तब उनका पनपना समाप्त हो जाता है। कुछ समय तक वे तरंगें जाती-आती हैं। साधक जब आगे ही बढ़ता चला जाता है तब एक दिन ऐसा आता है कि वे तरंगें समाप्त हो जाती हैं। उनका आवागमन मिट जाता है। यह सब होता है तप के द्रारा। साधक के लिए कहा गया है कि शरीर को प्रकंपित कर दो, वृत्तियों को प्रकंपित कर दो, कर्म-शरीर को प्रकंपित कर दो। वृत्तियों के केन्द्रों को इतना हिला दो कि उनका मूल उखड़ जाए और वे अपने स्थान से च्युत हो जाएं । राग का, द्वेष का, कषाय का, कषाय से उत्पन्न होने वाले आस्रवों का और आस्रवों से उत्पन्न होने वाली वृत्तियों का मूल उखड़ जाए। . ___ आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा और परिग्रह संज्ञा—ये चार कामना-मूलक संज्ञाएं हैं। क्रोध संज्ञा, मान संज्ञा, माया संज्ञा और लोभ संज्ञा—ये चार मनोमूलक संज्ञाएं हैं। ये आठों समाप्त हो जाएं। उनकी आसक्ति समाप्त हो जाए। उनको उखाड़ने का, मिटाने का एकमात्र उपाय है-तपस्या, ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन, ऊर्जा की ऊर्ध्वयात्रा। रसनेन्द्रिय और काम केन्द्र ध्यान की प्रत्येक प्रक्रिया में यह ध्यान दिया जाता है कि वृत्तियों की चंचलता. को समाप्त करने के लिए जीभ को स्थिर करना आवश्यक है। साधक ध्यान करने बैठा है । बहत विकल्प आ रहे हैं, चंचलता है। उस समय यदि वह साधक जीभ को उलटकर ताल की ओर स्थिर कर देता है, ताल पर लगा देता है तो विचित्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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