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ऊर्जा की ऊर्ध्वयात्रा | ७५
वाचिक प्रवृत्ति करते हैं, बोलते हैं तो ऊर्जा का व्यय होता है, इसलिए कहा गया है-वाक् गुप्ति करो। ___ सोचते हैं तो ऊर्जा का और अधिक व्यय होता है, इसलिए कहा गया हैमनोगुप्ति करो, निर्विचार रहो।
अध्यात्म के क्षेत्र में ऊर्जा के व्यय को कम करने के ये उपाय निर्दिष्ट हैं। गुप्तियों के द्वारा ऊर्जा का उत्पादन अधिक होता है, गुप्ति करो। ऊर्जा की आय अधिक होती है, व्यय कम होगा। आसन
ऊर्जा को ऊपर कैसे ले जाया जा सकता है, यह एक प्रश्न है। बैठने की विभिन्न मुद्राएं ऊर्जा के ऊर्ध्वरोहण में सहायक बनती हैं। सामान्य आदमी यह नहीं सोच सकता कि पालथी मारकर बैठने से तथा पद्मासन या उकडूं आसन में बैठने से क्या अन्तर आता है। ये सारे आसन विशिष्ट उद्देश्य से ही निर्णीत किए गए हैं। इनसे ऊर्जा का प्रवाह ऊपर की ओर होता है। पद्मासन से दबाव पड़ता है, ऊर्जा ऊपर की ओर जाने लगती है । उकडूं आसने से नीचे के स्नायुओं पर दबाव पड़ता है। गोदोहिका आसन से पीछे की ओर दबाव पड़ता है। ऊर्जा ऊपर जाने लगती
महावीर ने पूछा- "भंते ! ब्रह्मचर्य की साधना के लिए कुछ विशेष जानना चाहता हूं।" .
महावीर ने कहा-'उलूं ठाणं ठाएज्जा–खड़े-खड़े कायोत्सर्ग करो।'
खड़े-खड़े कायोत्सर्ग करने से ऊर्जा ऊपर की ओर जाती है, रक्त नीचे की ओर जाता है।
सर्वांगासन, शीर्षासन, वृक्षासन, पद्मासन-इन सबसे ऊर्जा ऊपर की ओर जाती है। ध्यान के लिए जितने आसनों का विधान किया गया, वे सब ऊर्जा को ऊर्ध्वगामी बनाने के उपक्रम हैं। इनसे ऊर्जा की ऊर्ध्वयात्रा, चित्त की ऊर्ध्वयात्रा होती है। इससे रूपान्तरण प्रारंभ हो जाता है, एक विस्फोट होता है। इस विस्फोट के बाद ही चेतना ऊपर की ओर बहने लगती है।
इन तीन अधर्म लेश्याओं और तीन धर्म लेश्याओं के बीच पहले एक ऐसी दीवार खिची रहती है कि सामान्य आदमी उसे तोड़ नहीं सकता। किन्तु जब साधक प्रबुद्ध चेतना वाला हो जाता है, ऊर्जा के महत्त्व को समझ लेता है, ऊर्जा का संचय कर लेता है और ऊर्जा के द्वारा कभी विस्फोट करता है तब वह दीवार टूटती
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